Rahim Ji Ne sacche Mitra ki kya visheshta bataiye hai
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मथत मथत माखन रहै दही मही बिलगाय
रहिमन सोई मीत है भीर परे ठहराय ।
दही को बार बार मथने से दही और मक्खन अलग हो जाते हैं।
रहीम कहते हैं कि सच्चा मित्र दुख आने पर तुरंत सहायता के लिये पहुॅच जाते हैं।
मित्रता की पहचान दुख में हीं होता है।
जो रहीम दीपक दसा तिय राखत पट ओट
समय परे ते होत हैं वाही पट की चोट ।
जिस प्रकार वधु दीपक को आॅचल की ओट से बचाकर शयन कक्ष में रखती है उसे
हीं मिलन के समय झपट कर बुझा देती है।बुरे दिनों में अच्छा मित्र भी अच्छा शत्रु बन जाता है ।
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I think this must be the right answer ?
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