rahim ke dohe class 9 ki book ke saare11 dohe aur un sab ke matlab shudh hindi mai...?
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1) रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : रहीम के इन दोहों में रहीम जी ने हमें प्रेम की नाजुकता के बारे में बताया है। उनके अनुसार प्रेम का बंधन किसी नाज़ुक धागे की तरह होता है और इसे बहुत संभाल कर रखना चाहिए। हम बलपूर्वक किसी को प्रेम के बंधन में नहीं बाँध सकते। ज्यादा खिंचाव आने पर प्रेम रूपी धागा चटक कर टूट सकता है। प्रेम रूपी धागे यानि टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ना बेहद मुश्किल होता है। अगर हम कोशिशें करके प्रेम के रिश्ते को फिर से जोड़ लें, तब भी लोगों के मन में कोई कसक तो बनी ही रह जाती है। दूसरे शब्दों में, अगर एक बार किसी के मन में आपके प्रति प्यार की भावना मर गई, तो वह आपको दोबारा पहले जैसा प्यार नहीं कर सकता। कुछ न कुछ कमी तो रह ही जाती है।
2) रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : रहीम के इन दोहों में हमें रहीम जी ने बहुत ही काम की सीख दी है। जिसके बारे में हम सब जानते हैं। रहीम जी इन पंक्तियों में कहते हैं कि अपने मन का दुःख हमें स्वयं तक ही रखना चाहिए। लोग ख़ुशी तो बाँट लेते हैं। परन्तु जब बात दुःख की आती है, तो वे आपका दुःख सुन तो अवश्य लेते हैं, लेकिन उसे बाँटते नहीं है। ना ही उसे कम करने का प्रयास करते हैं। बल्कि आपकी पीठ पीछे वे आपके दुःख का मज़ाक बनाकर हंसी उड़ाते हैं। इसीलिए हमें अपना दुःख कभी किसी को नहीं बताना चाहिए।
3) एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि हमें यह शिक्षा देते हैं कि एक बार में एक ही काम करने चाहिए। हमें एक साथ कई सारे काम नहीं करने चाहिए। ऐसे में हमारे सारे काम अधूरे रह जाते हैं और कोई काम पूरा नहीं होता। एक काम के पूरा होने से कई सारे काम खुद ही पूरे हो जाते हैं। जिस तरह, किसी पौधे को फल-फूल देने लायक बनाने हेतु, हमें उसकी जड़ में पानी डालना पड़ता है। हम उसके तने या पत्तों पर पानी डालकर फल प्राप्त नहीं कर सकते। ठीक इसी प्रकार, हमें एक ही प्रभु की श्रृद्धापूर्वक आराधना करनी चाहिए। अगर हम अपनी आस्था-रूपी जल को अलग-अलग जगह व्यर्थ बहाएंगे, तो हमें कभी भी मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता।
4) चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
रहीम के दोहे भावार्थ : इन पंक्तियों में रहीम जी ने राम के वनवास के बारे में बताया है। जब उन्हें 14 वर्षों का वनवास मिला था, तो वे चित्रकूट जैसे घने जंगल में रहने के लिए बाध्य हुए थे। रहीम जी के अनुसार, इतने घने जंगल में वही रह सकता है, जो किसी विपदा में हो। नहीं तो, ऐसी परिस्थिति में कोई भी अपने मर्ज़ी से रहने नहीं आएगा।
5) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥
रहीम के दोहे भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने हमें एक दोहे की महत्ता के बारे में बताया है। दोहे के चंद शब्दों में ही ढेर सारा ज्ञान भरा होता है, जो हमें जीवन की बहुत सारी महत्वपूर्ण सीख दे जाते हैं। जिस तरह, कोई नट कुंडली मारकर खुद को छोटा कर लेता है और उसके बाद ऊंचाई तक छलांग लगा लेता है। उसी तरह, एक दोहा भी कुछ ही शब्दों में हमें ढेर सारा ज्ञान दे जाता है।
6) धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर दास जी कहते हैं कि वह कीचड़ का थोड़ा-सा पानी भी धन्य है, जो कीचड़ में होने के बावजूद भी ना जाने कितने कीड़े-मकौड़ों की प्यास बुझा देता है। वहीँ दूसरी ओर, सागर का अपार जल जो किसी की भी प्यास नहीं बुझा सकता, कवि को किसी काम का नहीं लगता। यहाँ कवि ने एक ऐसे गरीब के बारे में कहा है, जिसके पास धन नहीं होने के बावजूद भी वह दूसरों की मदद करता है। साथ ही एक ऐसे अमीर के बारे में बताया है, जिसके पास ढेर सारा धन होने पर भी वह दूसरों की मदद नहीं करता।
7) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
रहीम के दोहे भावार्थ : यहाँ पर कवि ने स्वार्थी मनुष्य के बारे में बताया है और उसे पशु से भी बदतर कहा है। हिरण एक पशु होने पर भी मधुर ध्वनि से मुग्ध होकर शिकारी पर अपना सब कुछ न्योछावर कर देता है। जैसे कोई मनुष्य कला से प्रसन्न हो जाए, तो फिर वह धन के बारे में नहीं सोचता, अपितु वह अपना सारा धन कला पर न्योछावर कर देता है। परन्तु कुछ मनुष्य पशु से भी बदतर होते हैं, वे कला का लुत्फ़ तो उठा लेते हैं, परन्तु बदले में कुछ नहीं देते।
8)बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
रहीम के दोहे भावार्थ : रहीम जी ने हमें जीवन से संबंधित कई शिक्षाएँ दी हैं और उन्ही में से एक शिक्षा यह है कि हमें हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि कोई बात बिगड़े नहीं। जिस प्रकार, अगर एक बार दूध फट जाए, तो फिर लाख कोशिशों के बावजूद भी हम उसे मथ कर माखन नहीं बना सकते। ठीक उसी प्रकार, अगर एक बार कोई बात बिगड़ जाए, तो हम उसे पहले जैसी ठीक कभी नहीं कर सकते हैं। इसलिए बात बिगड़ने से पहले ही हमें उसे संभाल लेना चाहिए।