Rahim Ke Dohe ki Prasiddhi ka kya Karan hai
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जेा रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग
चंदन विश ब्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग ।
अच्छे चरित्र के स्वभाव बालों पर बुरे लोगो के साथ का कोई असर नहीं होता।
चंदन के बृक्ष पर साॅप लिपटा रहने से विश का कोई प्रभाव नही होता है ।
यद्पि अवनि अनेक हैैं कूपवंत सरताल
रहिमन मान सरोवर हिं मनसा करत मराल ।
संसार में अनेकानेक तालाब जलाशय कुॅआ आदि हैं किंतु हंस को केवल मानसरोवर
के जल में रहने और क्र्रीड़ा करने में सुख मिलता है। संतों को केवल इश्वर भक्ति में
हीं सुख प्राप्त होता है।
तासो ही कछु पाइये कीजै जाकी आस
रीते सरवर पर गये कैसे बुझे पियास ।
जिससे कुछ आशा हो उससे हीं कुछ प्राप्त हो सकता है । सूखे तालाब से प्यास कैसे
बुझेगी ।केवल समर्थ परमात्मा से मांगने पर हीं कुछ मिल सकता है ।
रहिमन जो तुम कहत थे संगति हीं गुराा होय
बीच ईखारी रस भरा रस काहै ना होय ।
रहीम कहते हैं कि संगति से गुण हेाता है। पर कभी कभी संगति से भी लाभ नहीं होतां।
ईख के खेत में कड़वा पौधा अपना गुण नहीं छोड़ता । दुस्ट कभी अपना जहर नहींत्यागता है ।
रहिमन नीर परवान बूड़ै पै सीझै नही
तैेसे मूरख ज्ञान बूझै पै सूझै नही ।
पथ्थर पानी में डूब जाता है पर कभी तैरता नहीं ।
मूर्ख ज्ञान की बातें सुनता है पर उसे कभी जीबन में अपनाता नही है।
ओछे को सतसंग रहिमन तजहुं अंगार ज्यों
तातो जारै अंग सीरे पै कारो लगै ।
नीच की संगति आग के समान छोड़नी चाहिये ।जलने पर वह शरीर को जलाती
है और बुझने पर वह कालिख लगा देती है ।
जो विशया संतन तजो मूढ ताहि लपटात
ज्यों नर डारत वमन कर स्वान स्वाद से खात ।
संत जिन वासनाओं को त्याग देते हैं -मूर्ख उन्हें आनन्द से ग्रहण करते हैं ।
लोग जिसे वमन कर देते हैं कुत्ता उसे बहुत स्वाद से खाता है ।
मान सहित विश खाय के संभु भये जगदीश
बिना मान अमृत पिये राहु कटायो शीश ।
आदर सहित विश पी कर महादेव जगत के स्वामी हैं लेकिन बिना प्रतिश्ठा के अमृत पी कर भी राहू ग्रह को अपना सिर कटाना पड़ा ।
रहिमन ओछे नरन सों बैर भलो न प्रीति
काटे चाटे स्वान को दुहुॅ भाॅति बिपरीत ।
बुरे लोगों से दुश्मनी और प्रेम दोनों हीं अच्छा नहीं होता।कुत्ता को मारो या दुत्कारो
तो वह काटता है और पुचकारने पर चाटने लगता है।वह दोनों अवस्था में खराब हीं है
रहिमन आलस भजन में बिशय सुखहि लपटाय
घास चरै पशु स्वाद तै गुरू गुलिलाॅय खाय ।
लोगों को इश्वर भजन में आलस्य होता है और विशय भोगो में लिप्त रहने में आन्ंद होता है।
जानवर घास आनन्द से चरते हैं परन्तु गुड़ उन्हें जबरदस्ती खिलाना पड़ता है।
कदली सीप भुजंग मुख स्वाति एक गुण तीन
जैसी संगति बैठिये तैसोई फल दीन।
स्वाति नक्षत्र का बूंद कदली में मिलकर कपूर और समुद्र का जल सीपी में मिल कर
मोती बन जाता है।वही पानी साॅप के मुॅह में विश बन जाता है। संगति का प्रभाव
जरूर पड़ता है।जैसी संगति होगी-वैसा हीं फल मिलता है।
रौल बिगारे राज नैं मौल बिगारे माल
सनै सनै सरदार की चुगल विगारे चाल ।
जनता का क्रोध राज्य की शासन ब्यबस्था को खराब करता है।देश का वित्त मंत्री
देश की अर्थ व्यवस्थाको बिगाड़ देता हैं।चुगलखोड़ लोग धीरे धीरे शासन के मंत्रियों
और सरकारों को विगाड़ देता है।अतःराजा को स्वयं इन पर प्रत्यक्ष प्रभावपूर्ण नियत्रणं
रखना चाहिये।
ससि की शीतल चाॅदनी सुंदर सबहिं सुहाय
लगे चोर चित में लटी घटि रहीम मन आय ।
चन्द्रमा की शीतल चाॅदनी सबों को अच्छी लगती है पर चोर को यह चाॅदनी अच्छी नही लगती है।
बुरे लोगों को अच्छाई में भी बुराई नजर आती है।
रीति प्रीति सबसों भली बैर न हित मित गोत
रहिमन याही जनम की बहुरि न संगति होत ।
सबों से प्रेम का संबंध रखने में भलाई है ।दुश्मनी का भाव रखने में कोई भलाई नहीं है।
इसी जीवन में यह प्रेम संभव है।पता नही पुनः मनुश्य जीवन मिले या नही -तब
हम कैसे संगी साथी के साथ संगति रख पायेंगें।
रहिमन लाख भली करो अगुनी अगुन न जाय
राग सुनत पय पियत हूॅ साॅप सहज धरि खाय ।
दुश्अ की लाख भलाई करने पर भी उसकी दुश्टता अवगुण नही जाती है।
साॅप को बीन पर राग सुनाने और दूध पिलाने पर भी वह सपेरा को डस लेता है।
रहिमन नीचन संग बसि लगत कलंक न काहि
दूध कलारी कर गहे मद समुझै सब ताहि ।
दुश्अ नीच के संग रहने से किसेे कलंक नही लगता।
शराब बेचने बाली कलवारिन के घड़े में दूध रहने पर भी लोग उसे शराब हीं समझेंगें।सज्जन ब्यक्ति को दुर्जन से दूर हीं रहना चाहिये।
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