Hindi, asked by srishty91, 10 months ago

Rahim Ke Mithi Vani tatha mitrata se sambandhit dohe​

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Answered by alokpandey34001
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मथत मथत माखन रहै दही मही बिलगाय

रहिमन सोई मीत है भीर परे ठहराय ।

दही को बार बार मथने से दही और मक्खन अलग हो जाते हैं।

रहीम कहते हैं कि सच्चा मित्र दुख आने पर तुरंत सहायता के लिये पहुॅच जाते हैं।

मित्रता की पहचान दुख में हीं होता है।

जो रहीम दीपक दसा तिय राखत पट ओट

समय परे ते होत हैं वाही पट की चोट ।

जिस प्रकार वधु दीपक को आॅचल की ओट से बचाकर शयन कक्ष में रखती है उसे

हीं मिलन के समय झपट कर बुझा देती है।बुरे दिनों में अच्छा मित्र भी अच्छा शत्रु बन जाता है ।

टूटे सुजन मनाइये जो टूटे सैा बार

रहिमन फिरि फिरि पोहिये टूटे मुक्ताहार ।

शुभेच्छु हितैशी को रूठने पर उसे अनेक प्रकार से मना लेना चाहिये।

ऐसे प्रेमी को मनाने मेंहार जीत का प्रश्न नही होना चाहिये।

मोती का हार टूटने परउसे पुनः पिरो लिया जाता है।वह मोती अत्यधिक मूल्यबान है।

वरू रहीम कानन बसिय असन करिय फल तोय

बंधु मध्य गति दीन ह्वै बसिबो उचित न होय ।

जंगल में बस जाओ और जंगली फल फूल पानी से निर्बाह करो लेकिन उन भाइयों के

बीच मत रहो जिनके साथ तुम्हारा सम्पन्न जीवन बीता हो और अब गरीब होकर रहना

पड़ रहा हो।

जलहिं मिलाई रहीम ज्यों कियो आपु सग छीर

अगबहिं आपुहि आप त्यों सकल आॅच की भीर ।

दूध पानी को अपने में पूर्णतः मिला लेता है पर दूध को आग पर चढाने से पानी उपर

आ जाता है और अन्त तक सहता रहता है।सच्चे दोस्त की यही पहचान है।

कहि रहीम संपति सगे बनत बहुत बहु रीत

विपति कसौटी जे कसे तेई सांचे मीत ।

संपत्ति रहने पर लोग अपने सगे संबंधी अनेक प्रकार से खोज कर बन जाते हैं।

लेकिन विपत्ति संकट के समय जो साथ देता है वही सच्चा मित्र संबंधी है।

ये रहीम दर दर फिरहिं मांगि मधुकरी खाहिं

यारो यारी छेाड़िक वे रहीम अब नाहिं ।

अब रहीम दर दर फिर रहा है और भीख मांगकर खा रहा है।अब दोस्तों ने भी दोस्ती

छोड़ दिया है और अब वे पुराने रहीम नही रहे। गरीब रहीम अब मित्रता नही निबाह सकता हैं।

रहिमन तुम हमसों करी करी करी जो तीर

बाढे दिन के मीत हेा गाढे दिन रघुबीर ।

कठिनाई के दिनों में मित्र गायब हो जाते हैं और अच्छे दिन आने पर हाजिर हो जाते हैं।

केवल प्रभु हीं अच्छे और बुरे दिनों के मित्र रहते हैं।मैं अब अच्छे और बुरे दिनों के मित्रों को पहचान गया हूॅ।

रहिमन कीन्ही प्रीति साहब को भावै नही

जिनके अगनित भीत हमैं गरीबन को गनै ं

रहीम ने अपने मालिक से प्रेम किया किंतु वह प्रेम मालिक को भाया नही-अच्छा नही

लगा।स्वाभाविक है कि जिनके अनगिनत मित्र होते हैं-पे गरीब की मित्रता को कयों

महत्व देंगें।

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