Rahim ki Bhakti Bhavna par prakash daliye.
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रहीम जी की भक्ति भावना
रहीम मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृति के कवि थे | रहीम का जन्म बैरम खान के घर में 1956 में हुआ था | रहीम साम्प्रदायिक सद्भावना के प्रतीक थे | रहीम एक मानव प्रेमी व सत्यनिष्ठ व्यक्तित्व के धनी थे |
रहीम जी का व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था| रहीम जी मुसलमान होकर भी कृष्ण भगवान के भक्त थे और उन्हें अपना आराध्य देव मानते थे| रहीम जी के दोहे हमें धर्म , नीति, प्रेम , श्रृंगार , ज्ञान का मार्ग दिखाते है| सभी मनुष्यों से उनका परिचय था वह मानव-जाती के प्रति उनका व्यवहार दया और परोपकारी था| उनके लिखे हुए दोहों से उनकी सच्ची भक्ति का पता चलता है|
रहीम जी का नीतिकाव्य परंपरा में अपना अलग और महत्वपूर्ण स्थान है| रहीम जी ने व्यापक और अनेक विषयों पर अपनी लेखनी चलाई | रहीम जी के दोहे आज भी हमें जीवन में जीने का रास्ता दिखाते है| रहीम जी के स्वयं के अनुभवों तथा विविध विषयों पर प्रभावशाली निति वाक्य देखने को मिलते है|
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
रहीम जी कहते है हमें एक समय में एक बार में एक ही कार्य ही करना चाहिए तभी हमें सफलता मिलती है | हमें एक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत करनी चाहिए | एक साथ सारे काम करेंगे तो सफलता नहीं मिलेगी |
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