Rahim Rahim ke dohe chapter 13 class 7 pankhudiya Hindi pathmaala explanation step by step
Answers
Rahim Ke Dohe With Meaning in Hindi Class 7- रहीम के दोहे भावार्थ
कहि ‘रहीम’ संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
बिपति-कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत॥
रहीम के दोहे अर्थ सहित: रहीम के इस दोहे में वे कहते हैं कि हमारे सगे-संबंधी तो किसी संपत्ति की तरह होते हैं, जो बहुत सारे रीति-रिवाजों के बाद बनते हैं। परंतु जो व्यक्ति मुसीबत में आपकी सहायता कर, आपके काम आए, वही आपका सच्चा मित्र होता है।
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
‘रहिमन’ मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह॥
रहीम के दोहे अर्थ सहित: रहीम दास के इस दोहे में उन्होंने सच्चे प्रेम के बारे में बताया है। उनके अनुसार, जब नदी में मछली पकड़ने के लिए जाल डालकर बाहर निकाला जाता है, तो जल तो उसी समय बाहर निकल जाता है। उसे मछली से कोई प्रेम नहीं होता। मगर, मछली पानी के प्रेम को भूल नहीं पाती है और उसी के वियोग में प्राण त्याग देती है।
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
रहीम के दोहे अर्थ सहित: रहीम जी ने अपने इस दोहे में कहा है कि जिस प्रकार वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते और नदी-तालाब अपना पानी स्वयं नहीं पीते। ठीक उसी प्रकार, सज्जन और अच्छे व्यक्ति अपने संचित धन का उपयोग केवल अपने लिए नहीं करते, वो उस धन से दूसरों का भला करते हैं।
थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात ।
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात ॥
रहीम के दोहे अर्थ सहित: इस दोहे में रहीम दास जी ने कहा है कि जिस प्रकार बारिश और सर्दी के बीच के समय में बादल केवल गरजते हैं, बरसते नहीं हैं। उसी प्रकार, कंगाल होने के बाद अमीर व्यक्ति अपने पिछले समय की बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं होता है।
धरती की सी रीत है, सीत घाम औ मेह ।
जैसी परे सो सहि रहै, त्यों रहीम यह देह॥
रहीम के दोहे अर्थ सहित: रहीम जी ने अपने इस दोहे में मनुष्य के शरीर की सहनशीलता के बारे में बताया है। वो कहते हैं कि मनुष्य के शरीर की सहनशक्ति बिल्कुल इस धरती के समान ही है। जिस तरह धरती सर्दी, गर्मी, बरसात आदि सभी मौसम झेल लेती है, ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी जीवन के सुख-दुख रूपी हर मौसम को सहन कर लेता है।