Raidas ke pad ka mool saransh
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रैयदास एक महान संत एवं कवि थें। उनकी काव्य रचनाओं का उद्देश्य समाज को महत्वपूर्ण संदेश देना तथा समाज की बुराइयों को दुर करनें की चेष्टा करना था। रैयदास जी के काव्य रचना लोगों के मन में बड़ी सरलता से अपने भाव अंकित कर जाती थी यही उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी। ईश्वर एक हैं इस भाव से लोगों को एक करना तथा हर एक प्राणी में ईश्वर का वास है ऐसे विचार को लोगों तक पहुंचाने का यह एक माध्यम था।
''अब कैसे छुटै राम नाम रट लागी''
उपर्युक्त शीर्षक पद में रैयदास जी ने ईश्वर को अपने अंतर्मन में ढूंढने को कहा है। उन्होंने बताया कि ईश्वर किसी मंदिर - मस्जिद में नहीं अपितु हमारे हीं अंदर हैं। अगर हम भक्तिभाव से अपने अंतःकरण में देखें तो हमें ईश्वर की प्राप्ति हो जाएगी। कवि ने यह स्पष्ट करनें का प्रयत्न किया कि भक्त और भगवान एक दुसरे के पूरक हैं इसकी व्याख्या उन्होंने जीवों और प्रकृति की चर्चा करते हुए दिया है। कवि का मानना है कि युग युगांतर तक ईश्वर ही सर्वश्रेष्ठ हैं और रहेंगे।
“ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।”
उपर्युक्त पद में रैयदास जी नें यह बताना चाहा हैं कि ईश्वर के नजरों में हम सब एक हैं। ईश्वर के लिए गरीब-धनी, छूत-अछूत आदि का कोई तात्पर्य नहीं है उनके लिए हमसब एक हैं और वे सबका कल्याण करतें हैं। इस प्रकार रैयदास जी ने छूत अछूत जैसी कुरीतियों को त्यागने का भी परामर्श दिया है।