raidas ke pad ke sarash
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यहाँ पर रैदास के दो पद लिए गए हैं। पहले पद में कवि ने भक्त की उस अवस्था का वर्णन किया है जब भक्त पर अपने आराध्य की भक्ति का रंग पूरी तरह से चढ़ जाता है कवि के कहने का अभिप्राय है कि एक बार जब भगवान की भक्ति का रंग भक्त पर चढ़ जाता है तो भक्त को भगवान् की भक्ति से दूर करना असंभव हो जाता है। कवि कहता है कि यदि प्रभु चंदन है तो भक्त पानी है। जिस प्रकार चंदन की सुगंध पानी के बूँद-बूँद में समा जाती है उसी प्रकार प्रभु की भक्ति भक्त के अंग-अंग में समा जाती है। यदि प्रभु बादल है तो भक्त मोर के समान है जो बादल को देखते ही नाचने लगता है। यदि प्रभु चाँद है तो भक्त उस चकोर पक्षी की तरह है जो बिना अपनी पलकों को झपकाए चाँद को देखता रहता है। यदि प्रभु दीपक है तो भक्त उसकी बत्ती की तरह है जो दिन रात रोशनी देती रहती है। कवि भगवान् से कहता है कि हे प्रभु यदि तुम मोती हो तो तुम्हारा भक्त उस धागे के समान है जिसमें मोतियाँ पिरोई जाती हैं। उसका असर ऐसा होता है। यदि प्रभु स्वामी है तो कवि दास यानि नौकर है। दूसरे पद में कवि भगवान की महिमा का बखान कर रहे हैं। कवि अपने आराध्य को ही अपना सबकुछ मानते हैं। कवि भगवान की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि भगवान गरीबों और दीन-दुःखियों पर दया करने वाले हैं, उनके माथे पर सजा हुआ मुकुट उनकी शोभा को बड़ा रहा है। कवि कहते हैं कि भगवान में इतनी शक्ति है कि वे कुछ भी कर सकते हैं और उनके बिना कुछ भी संभव नहीं है। भगवान के छूने से अछूत मनुष्यों का भी कल्याण हो जाता है क्योंकि भगवान अपने प्रताप से किसी नीच जाति के मनुष्य को भी ऊँचा बना सकते हैं। कवि उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस भगवान ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे संतों का उद्धार किया था वही बाकी लोगों का भी उद्धार करेंगे। कवि कहते हैं कि हे सज्जन व्यक्तियों तुम सब सुनो उस हरि के द्वारा इस संसार में सब कुछ संभव है।
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