raidas Ke Pad ki paribhasha kis
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रामानंद की बारह शिष्यों में रैदास का नाम भी प्रसिद्ध है। रैदास काशी के रहने वाले थे और निर्गुण पंथ की परंपरा में इन्होंने अपनी रचनाओं का विन्यास किया है।
रैदास की रचनाओं में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है, उनकी की रचनाओं में उपमा और रूपक अलंकारों का प्रयोग विशेष रूप से हुआ है |
रैदास का उल्लेख कई ग्रंथों में मिलता है किंतु इनकी फुटकर पद वाणी नाम से संकलित हैं। इनके पदों की विशेषता है कि आदि गुरु ग्रंथ साहिब में इनके चालीस पद संकलित हैं। रैदास हिंदी साहित्य के पूर्वमध्यकाल मैं भक्ति काल के कवि हैं।
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इस पद में कवि ने उस अवस्था का वर्णन किया है जब भक्त पर भक्ति का रंग पूरी तरह से चढ़ जाता है। ... यदि भगवान मोती हैं तो भक्त धागे के समान है जिसमें मोतियाँ पिरोई जाती हैं। उसका असर ऐसा होता है जैसे सोने में सुहागा डाला गया हो अर्थात उसकी सुंदरता और भी निखर जाती है।
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