Raidas ke pad ki summary
Answers
यहाँ रैदास के दो पद लिए गए हैं। पहले पद ‘प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी’ में कवि अपने आराध्य को याद करते हुए उनसे अपनी तुलना करता है। पहले पद में कवि ने भगवान् की तुलना चंदन, बादल, चाँद, मोती, दीपक से और भक्त की तुलना पानी, मोर, चकोर, धागा, बाती से की है। उसका प्रभु बाहर कहीं किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं विराजता अर्थात कवि कहता है कि उनके आराध्य प्रभु किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं रहता बल्कि कवि का प्रभु अपने अंतस में सदा विद्यमान रहता है। यही नहीं, कवि का आराध्य प्रभु हर हाल में, हर काल में उससे श्रेष्ठ और सर्वगुण संपन्न है। इसीलिए तो कवि को उन जैसा बनने की प्रेरणा मिलती है।
दूसरे पद में भगवान की अपार उदारता, कृपा और उनके समदर्शी स्वभाव का वर्णन है। रैदास कहते हैं कि भगवान ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे निम्न कुल के भक्तों को भी सहज-भाव से अपनाया है और उन्हें लोक में सम्माननीय स्थान दिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान् ने कभी किसी के साथ कोई भेद-भाव नहीं किया। दूसरे पद में कवि ने भगवान को गरीबों और दीन-दुःखियों पर दया करने वाला कहा है। रैदास ने अपने स्वामी को गुसईआ (गोसाई) और गरीब निवाजु (गरीबों का उद्धार करने वाला) पुकारा है।