Hindi, asked by Rahuldost8119, 9 months ago

Raidas kis kal va kis shakha ke kavi hain class 9

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Answered by prathemeshgosavi10
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Answer:

रैदास नाम से विख्यात संत रविदास का जन्म सन् 1388 (इनका जन्म कुछ विद्वान 1398 में हुआ भी बताते हैं) को बनारस में हुआ था। रैदास कबीर के समकालीन हैं।

रैदास की ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था।

मध्ययुगीन साधकों में रैदास का विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह रैदास भी संत कोटि के प्रमुख कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। कबीर ने 'संतन में रविदास' कहकर इन्हें मान्यता दी है।

मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रैदास का बिल्कुल भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रैदास को उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं। सीधे-सादे पदों में संत कवि ने हृदय के भाव बड़ी स़फाई से प्रकट किए हैं। इनका आत्मनिवेदन, दैन्य भाव और सहज भक्ति पाठक के हृदय को उद्वेलित करते हैं। रैदास के चालीस पद सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी सम्मिलित हैं।

कहते हैं मीरा के गुरु रैदास ही थे।

चल मन | रैदास के पद

चल मन! हरि चटसाल पढ़ाऊँ।।

गुरु की साटी ग्यान का अच्छर,

बिसरै तौ सहज समाधि लगाऊँ।।

प्रेम की पाटी, सुरति की लेखनी,

ररौ ममौ लिखि आँक लखाऊँ।।

येहि बिधि मुक्त भये सनकादिक,

ह्रदय बिचार प्रकास दिखाऊँ।।

...

रैदास के पद

अब कैसे छूटे राम रट लागी।

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी॥

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा॥

प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती॥

प्रभु जी, तुम मोती, हम धागा जैसे सोनहिं मिलत सोहागा॥

...

रैदास के दोहे

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।

तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।

हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।

दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।

...

रैदास की साखियाँ

हरि सा हीरा छाड़ि कै, करै आन की आस ।

ते नर जमपुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। १ ।।

अंतरगति रार्चैँ नहीं, बाहर कथैं उदास ।

ते नर जम पुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। २ ।।

रैदास कहें जाके ह्रदै, रहै रैन दिन राम ।

सो भगता भगवंत सम, क्रोध न ब्यापै काम ।। ३

...

Explanation:

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Answered by vikasbarman272
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रैदास भक्ति कालीन कवि हैं और उन्हें भारतीय कविता की भक्ति शाखा का एक हिस्सा माना जाता है।

  • रैदास भक्ति आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति थे और अपनी भक्ति कविताओं के लिए जाने जाते थे जो भगवान के गुणों की प्रशंसा करते थे।
  • वह निचली जाति से ताल्लुक रखते थे और उनकी कविताओं में उनके अनुभवों और संघर्षों को दर्शाया गया था।
  • उनकी कविताएँ स्थानीय बोली में लिखी गई थीं और जनता के बीच व्यापक रूप से लोकप्रिय थीं।
  • रैदास की कविता भक्ति कविता का एक रूप थी जिसने धर्म के भक्ति पक्ष पर जोर दिया।
  • उन्होंने ईश्वर के प्रति अपने प्रेम और भक्ति के संदेश को व्यक्त करने के लिए सरल भाषा और आकर्षक अलंकार का प्रयोग किया।
  • उनकी कविताओं को भक्ति साहित्य में शामिल किया गया है, जिसमें भक्ति कविता और गीत शामिल हैं जो भक्त की आध्यात्मिक भक्ति को व्यक्त करते हैं।

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