raiyatwari and mahalwari system in hindi
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☆☆ महालवाड़ी व्यवस्था ☆
▪महालवाड़ी व्यवस्था का प्रस्ताव सर्वप्रथम 'हॉल्ट मैकेंजी' द्वारा लाया गया था। इस व्यवस्था के अंतर्गत भूमि पर ग्राम समुदाय का सामूहिक अधिकार होता था।
▪इस समुदाय के सदस्य अलग-अलग या फिर संयुक्त रूप से लगान की अदायगी कर सकते थे।
सरकारी लगान को एकत्र करने के प्रति पूरा 'महाल' या 'क्षेत्र' सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार होता था।
▪महाल के अंतर्गत छोटे व बड़े सभी स्तर के ज़मींदार आते थे।
▪महालवाड़ी व्यवस्था का प्रस्ताव सर्वप्रथम 1819 ई. में 'हॉल्ट मैकेंजी' द्वारा लाया गया था।
▪इस प्रस्ताव को 1822 ई. के रेग्यूलेशन-7 द्वारा क़ानूनी रूप प्रदान किया गया।
▪यह व्यवस्था उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा पंजाब में सर्वप्रथम लागू की गई।
▪महालवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत ब्रिटिश भारत की भूमि का लगभग 30% भाग सम्मिलित था।
इस व्यवस्था में प्रारम्भ में लगान की दर कुल उपज का 80% निश्चित की गई थी।
▪कालान्तर में लॉर्ड विलियम बैंटिक ने मार्टिन बर्ड, जिन्हें उत्तरी भारत में भूमि कर व्यवस्था का प्रवर्तक माना जाता है, के सहयोग से 1833 ई. का रेग्यूलेशन-9 पारित करवाया।
▪इसके अनुसार इस दर को कम करके 66% कर दिया गया।
▪1855 ई. में पुन: सहारनपुर नियम के अनुसार लॉर्ड डलहौज़ी ने लगान की दर को 50% निश्चित किया।
▪इस व्यवस्था का परिणाम भी कृषकों के प्रतिकूल रहा, परिणामत: 1857 ई. के विद्रोह में इस व्यवस्था से प्रभावित बहुत से लोगों ने हिस्सा लिया।
☆ ☆ रैयतवाड़ी व्यवस्था ☆☆
▪ रैयतवाड़ी व्यवस्था व्यवस्था में प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार भूमि का स्वामी होता था, जो सरकार को लगान देने के लिए उत्तरदायी होता था। भूमिदार के पास भूमि को रहने, रखने व बेचने का अधिकार होता था।
▪भूमि कर न देने की स्थिति में भूमिदार को, भूस्वामित्व के अधिकार से वंचित होना पड़ता था।
▪इस व्यवस्था के अंतर्गत सरकार का रैयत से सीधा सम्पर्क होता था।
▪रैयतवाड़ी व्यवस्था को मद्रास तथा बम्बई (वर्तमान मुम्बई) एवं असम के अधिकांश भागों में लागू किया गया।
▪रैयतवाड़ी भूमि कर व्यवस्था को पहली बार 1792 ई. में मद्रास के 'बारामहल' ज़िले में लागू किया गया।
▪टॉमस मुनरो जिस समय मद्रास का गवर्नर था, उस समय उसने कुल उपज के तीसरे भाग को भूमि कर का आधार मानकर मद्रास में इस व्यवस्था को लागू किया।
▪मद्रास में यह व्यवस्था लगभग 30 वर्षों तक लागू रही।
▪इस व्यवस्था में सुधार के अंतर्गत 1855 ई. में भूमि की पैमाइश तथा उर्वरा शक्ति के आधार पर कुल उपज का 30% भाग लगान के रूप में निर्धारित किया गया, परन्तु 1864 ई. में कम्पनी सरकार ने भू-भाटक (भूमि का भाड़ा, किराया) को 50% निश्चित कर दिया।
▪बम्बई में 1835 ई. में लेफ़्टिनेण्ट विनगेट के भूमि सर्वेक्षण के आधार पर "रैयतवाड़ी व्यवस्था" लागू की गई।
▪इसमें भूमि की उपज की आधी मात्रा सरकारी लगान के रूप में निश्चित की गई।
▪कालान्तर में इसे 66% से 100% के मध्य तक बढ़ाया गया। परिणामस्वरूप दक्कन में 1879 ई. में दक्कन कृषक राहत अधिनियम पारित किया गया।
▪बम्बई की रैयतवाड़ी पद्धति अधिक लगान एवं लगान की अनिश्चितता जैसे दोषों से युक्त थी।
किसानों को इस व्यवस्था में अधिक लगान लिए जाने के विरुद्ध न्यायालय में जाने की अनुमति नहीं थी।
▪ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भूमि कर की इस नई प्रणाली का परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा भयानक रहा।
▪धीरे-धीरे भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं भारतीय कृषि का रूप बदलने लगा। अब उत्पादन के ऐसे साधन प्रयोग में लाये जाने लगे, जिसमें धन की आवश्यकता पड़ती थी।
इससे मुद्रा अर्थव्यवस्था एवं कृषि के वाणिज्यीकरण को प्रोत्साहन मिला।
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