raja kunwar singh ka Jivan parichay
Answers
Answered by
1
वीर कुंवर सिंह – Veer Kunwar Singh जगदीशपुर के शाही उज्जैनिया राजपूत घराने से संबंध रखते थे। जो वर्तमान में भारत के बिहार राज्य के भोजपुर जिले का ही एक भाग है। 80 साल की उम्र में, 1857 में भारत की आज़ादी के पहले युद्ध में उनकी नियुक्ती ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ भारतीय सेना के बैंड के रूप में की गयी थी। बिहार में ब्रिटिशो के खिलाफ हो रहे युद्ध के वे मुख्य व्यवस्थापक थे।
कुंवर सिंह का जन्म नवम्बर 1777 को राजा शाहबजादा सिंह और रानी पंचरतन देवी के घर, बिहार राज्य के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) जिले के जगदीशपुर में हुआ था। वे उज्जैनिया राजपूत घराने से संबंध रखते थे, जो परमार समुदाय की ही एक शाखा थी। उन्होंने राजा फ़तेह नारियां सिंह (मेवारी के सिसोदिया राजपूत) की बेटी से शादी की, जो बिहार के गया जिले के एक समृद्ध ज़मीनदार और मेवाड़ के महाराणा प्रताप के वंशज भी थे।
1857 के सेपॉय विद्रोह में कुंवर सिंह सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे।
1777 AD में जन्मे कुंवर सिंह की मृत्यु 1857 की क्रांति में हुई थी। जब 1857 में भारत के सभी भागो में लोग ब्रिटिश अधिकारियो का विरोध कर रहे थे, तब बाबु कुंवर सिंह अपनी आयु के 80 साल पुरे कर चुके थे। इसी उम्र में वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लढे। लगातार गिरती हुई सेहत के बावजूद जब देश के लिए लढने का सन्देश आया, तब वीर कुंवर सिंह तुरंत उठ खड़े हुए और ब्रिटिश सेना के खिलाफ लढने के लिए चल पड़े, लढते समय उन्होंने अटूट साहस, धैर्य और हिम्मत का प्रदर्शन किया था।
बिहार में कुंवर सिंह ब्रिटिशो के खिलाफ हो रही लढाई के मुख्य कर्ता-धर्ता थे। 5 जुलाई को जिस भारतीय सेना ने दानापुर का विद्रोह किया था, उन्होंने ही उस सेना को आदेश दिया था। इसके दो दिन बाद ही उन्होंने जिले के हेडक्वार्टर पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन ब्रिटिश सेना ने धोखे से अंत में कुंवर सिंह की सेना को पराजित किया और जगदीशपुर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। इसके बाद दिसम्बर 1857 को कुंवर सिंह अपना गाँव छोड़कर लखनऊ चले गये थे।
मार्च 1858 में, उन्होंने आजमगढ़ पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन जल्द ही उन्हें वो जगह पर छोडनी पड़ी। इसके बाद उन्हें ब्रिगेडियर डगलस ने अपनाया और उन्हें अपने घर बिहार वापिस भेज दिया गया।
मृत्यु :
23 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर में लढी गयी अपनी अंतिम लडाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना पूरी तरह हावी हो चुकी थी। 22 और 23 अप्रैल को लगातार दो दिन तक लढते हुए वे बुरी तरह से घायल हो चुके थे, एल्किन फिर भी बहादुरी से लढते हुए उन्होंने जगदीशपुर किले से यूनियन जैक का ध्वज निकालकर अपना झंडा लहराया। और 23 अप्रैल 1858 को वे अपने महल में वापिस आए लेकिन आने के कुछ समय बाद ही 26 अप्रैल 1858 को उनकी मृत्यु हो गयी।
कुंवर सिंह ने भारतीय आज़ादी के पहले युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके चलते इतिहास में उनके नाम को स्वर्णिम अक्षरों से भी लिखा गया। भारतीय स्वतंत्रता अभियान में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता है, 23 अप्रैल 1966 को भारत सरकार ने उनके नाम का मेमोरियल स्टैम्प भी जारी किया।
कुंवर सिंह का जन्म नवम्बर 1777 को राजा शाहबजादा सिंह और रानी पंचरतन देवी के घर, बिहार राज्य के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) जिले के जगदीशपुर में हुआ था। वे उज्जैनिया राजपूत घराने से संबंध रखते थे, जो परमार समुदाय की ही एक शाखा थी। उन्होंने राजा फ़तेह नारियां सिंह (मेवारी के सिसोदिया राजपूत) की बेटी से शादी की, जो बिहार के गया जिले के एक समृद्ध ज़मीनदार और मेवाड़ के महाराणा प्रताप के वंशज भी थे।
1857 के सेपॉय विद्रोह में कुंवर सिंह सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे।
1777 AD में जन्मे कुंवर सिंह की मृत्यु 1857 की क्रांति में हुई थी। जब 1857 में भारत के सभी भागो में लोग ब्रिटिश अधिकारियो का विरोध कर रहे थे, तब बाबु कुंवर सिंह अपनी आयु के 80 साल पुरे कर चुके थे। इसी उम्र में वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लढे। लगातार गिरती हुई सेहत के बावजूद जब देश के लिए लढने का सन्देश आया, तब वीर कुंवर सिंह तुरंत उठ खड़े हुए और ब्रिटिश सेना के खिलाफ लढने के लिए चल पड़े, लढते समय उन्होंने अटूट साहस, धैर्य और हिम्मत का प्रदर्शन किया था।
बिहार में कुंवर सिंह ब्रिटिशो के खिलाफ हो रही लढाई के मुख्य कर्ता-धर्ता थे। 5 जुलाई को जिस भारतीय सेना ने दानापुर का विद्रोह किया था, उन्होंने ही उस सेना को आदेश दिया था। इसके दो दिन बाद ही उन्होंने जिले के हेडक्वार्टर पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन ब्रिटिश सेना ने धोखे से अंत में कुंवर सिंह की सेना को पराजित किया और जगदीशपुर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। इसके बाद दिसम्बर 1857 को कुंवर सिंह अपना गाँव छोड़कर लखनऊ चले गये थे।
मार्च 1858 में, उन्होंने आजमगढ़ पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन जल्द ही उन्हें वो जगह पर छोडनी पड़ी। इसके बाद उन्हें ब्रिगेडियर डगलस ने अपनाया और उन्हें अपने घर बिहार वापिस भेज दिया गया।
मृत्यु :
23 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर में लढी गयी अपनी अंतिम लडाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना पूरी तरह हावी हो चुकी थी। 22 और 23 अप्रैल को लगातार दो दिन तक लढते हुए वे बुरी तरह से घायल हो चुके थे, एल्किन फिर भी बहादुरी से लढते हुए उन्होंने जगदीशपुर किले से यूनियन जैक का ध्वज निकालकर अपना झंडा लहराया। और 23 अप्रैल 1858 को वे अपने महल में वापिस आए लेकिन आने के कुछ समय बाद ही 26 अप्रैल 1858 को उनकी मृत्यु हो गयी।
कुंवर सिंह ने भारतीय आज़ादी के पहले युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके चलते इतिहास में उनके नाम को स्वर्णिम अक्षरों से भी लिखा गया। भारतीय स्वतंत्रता अभियान में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता है, 23 अप्रैल 1966 को भारत सरकार ने उनके नाम का मेमोरियल स्टैम्प भी जारी किया।
AlveenaShaikh786:
yrr
Similar questions
Chemistry,
8 months ago