rajya ki utpatti ke samajik samjhaota
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थांमस हाब्स इंग्लैंड के निवासी थे और राजवंशी संपर्क के कारण उनकी विचारधारा राजतंत्रवादी थी। उनके समय में इंग्लैंड में राजतंत्र और प्रजातंत्र के समर्थकों के बीच तनावपूर्ण विवाद चल रहा था। इस संबंध में हाब्स का विश्वास था कि शक्तिशाली राजतंत्र के बिना देश में शांति और व्यवस्था स्थापित नहीं हो सकती। अपने इस विचार का प्रतिपादन करने के लिए उसने 1651 में प्रकाशित पुस्तक ‘लेवायथन’ (Leviathan) में समझौता सिद्धांत का वर्णन किया। उसने सामाजिक समझौते की व्याख्या इस प्रकार की है –
मानव स्वभाव – हाब्स के समय में चल रहे इंग्लैंड के बीच में उसके सामने मानव स्वभाव का घृणित पक्ष ही रखा। उसने अनुभव किया कि मनुष्य एक स्वार्थी, अहंकारी और आत्मभिमानी प्राणी है। वह सदा ही से स्नेह करता है और शक्ति प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है।
प्राकृतिक अवस्था – इस स्वार्थी अहंकारी और आत्माभिमानी व्यक्ति के जीवन पर किसी प्रकार का नियंत्रण न होने का संभावित परिणाम यह हुआ कि प्रत्येक मनुष्य प्रत्येक दूसरे मनुष्य को शत्रु की दृष्टि से देखने लगा और सभी भूखे भेड़ियों के समान एक दूसरे को निकल जाने के लिए घूमने लगे। मनुष्य को न्याय और अन्याय का कोई ज्ञान नहीं था और प्राकृतिक अवस्था ‘शक्ति ही सत्य है’ की धारणा पर आधारित थी।
समझौते का कारण – जीवन और संपत्ति की सुरक्षा तथा मृत्यु और संहार कि इस भय ने व्यक्तियों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह इस असहनीय प्राकृतिक अवस्था का अंत करने के उद्देश्य से एक राजनीतिक समाज का निर्माण करें।
समझौता – नवीन समाज का निर्माण करने के लिए सब व्यक्तियों ने मिलकर एक समझौता किया। हाब्स के मतानुसार यह समझौता प्रत्येक व्यक्ति ने शेष व्यक्ति समूह से किया जिसमें प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक दूसरे व्यक्ति से कहता है कि “मैं इस शक्ति अथवा सभा को अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण करता हूं जिससे कि वह हम पर शासन करें परंतु इसी शर्त पर कि आप भी अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण इसे इसी रूप में करें और इसकी आज्ञाओं को माने।” इस प्रकार सभी व्यक्तियों ने एक व्यक्ति अथवा सभी के प्रति अपने अधिकारों का पूर्ण समर्थन कर दिया और यह शक्ति या सत्ता उस क्षेत्र में सर्वोच्च सत्ता बन गई, यही राज्य का श्रीगणेश है।
नवीन राज्य का रूप – हाब्स के समझौते द्वारा एक ऐसी निरंकुश राजतंत्रात्मक राज्य की स्थापना की गई है, जिसका शासक संपूर्ण शक्ति संपन्न है और जिसके प्रजा के प्रति कोई कर्तव्य नहीं है सासित वर्ग को शासक वर्ग के विरुद्ध विद्रोह का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।