रक्षत वृक्षान् गीतस्य सारांश स्वीयवाक्यै :लिखन्तु
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Explanation:
दस कुओं के बराबर एक बावड़ी है,दस बावड़ियों के समान एक तालाब है,दस तालाबों के बराबर एक पुत्र हैं, तथा दस पुत्रों के समान एक वृक्ष है।)
पुत्रों को जैसा स्नेह देकर पाला पोसा जाता है, वैसे ही वृक्षा के साथ किये जाने योग्य मानने वालीं संस्कृति में वृक्ष विनाश की विकृति अति कष्टकारी है ।
जिन पंचतत्वों (धरती,जल, अग्नि, वायु, आकाश) से परमात्मा ने हमारी देह बनायी, उन्हीं तत्वों को निरन्तर प्रर्दशित करते हैं।
प्रकृति से हमें निरन्तर लेते हैं, उपभोग करते हैं, नष्ट करते हैं। कभी उसे लौटाने की,उसकी क्षतिपूर्ति की, उसे पुन: समृद्ध करने की बात मन में आती, इस दिशा में कुछ किया?यह प्रश्न स्वयं से पूछे।
वृक्षारोपण करें……!
निरन्तर वृक्षारोपण, अपने लागाये पौधे को स्नेह पूर्वक बड़ा करके पेड़ बनाने का संकल्प प्रत्येक भारतीय को करना चाहिए।वृक्ष होंगे तो वायु शुद्ध होगी, वर्षों अधिक होगी।
इसी संकल्प के साथ कुछ अन्य संकल्प भी लेने चाहिए –
∆ धूम्रपान द्वारा वायु-प्रदूषण तथा स्वस्थ्य नाश नहीं करेंगे।
∆ पोलीथीन का प्रयोग समाप्त कर पर्यावरण बचाओ।
∆ भूगर्भीय जल का स्तर बढ़ाने के लिए मकानों भवनों में वर्षा जल संग्रह की व्यवस्था करेंगे।
∆ जल का प्रयोग बड़ी कंजूसी से विवेक पूर्ण करेंगे।
∆ पैट्रोल-डीजल के वाहनों का न्यूनतम प्रयोग करेंगे।
इसी प्रकार के अन्य संरक्षण वाली उपाय सोचने होंगे तथा क्रियान्वित करने होंगे। ऐसे संकल्पों के क्रियान्वयन से ही प्रकृति प्रसन्न होंगी और हमारी रक्षा करेगी, वैसे ही जैसे वह रामराज्य में करती थी। ग्यारह हजार वर्षों के रामशसन के दौरान न कभी अकाल पड़ा,न सूखा,न बाढ़ आती,न तूफान। प्रकृति हमारे प्रति मृदु थी, क्योंकि हम उसके प्रति अनुरागी थे, रक्षाभावी थे ।
।।जय श्री कृष्णा।।
।। मेरे पियारे सांवरे।।