Raksha Bandhan par nibandh
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रक्षाबंधन भाई बहनों का वह त्योहार है तो मुख्यत: हिन्दुओं में प्रचलित है पर इसे भारत के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं। पूरे भारत में इस दिन का माहौल देखने लायक होता है और हो भी क्यूं ना, यही तो एक ऐसा विशेष दिन है जो भाई-बहनों के लिए बना है।
यूं तो भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है। बरसों से चला आ रहा यह त्यौहार आज भी बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
Explanation:
रक्षाबंधन धार्मिकता से अधिक भावनात्मक संबंधों का पर्व है और आत्म से कार्य का पर्व है समाज में कितनी ही विसंगतियां क्यों ना आई हो लेकिन इस पर्व की सार्थकता बनी हुई है
सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला पर्व रक्षाबंधन ऐसा परिवारिक पर्व है जो संपूर्ण राष्ट्र में मनाया जाता है भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व अपने आप में अनु नाटक व अतुलनीय है यह प्रेम का संबंधों की प्रगाढ़ता का भावना को चिर स्थाई त्वं देने का पर्व है
पर्व मनाने के कारण-रक्षाबंधन त्योहार कब और कैसे आरंभ हुआ इस प्रश्न का प्रमाणिक उत्तर देना कठिन है हां इस पर्व से जुड़ी कुछ धार्मिक ऐतिहासिक कथाएं तथा कवि दितीय हैं जिनका संख्या पर क्रूस इस प्रकार है
धार्मिक आधार-प्राचीन कथा के अनुसार असुरों द्वारा इंद्र का सिंहासन छीन लेने पर देव सुर संग्राम की तैयारियां आरंभ हो गई इंद्र चिंतित थे कि युद्ध में विजय प्राप्त होगी या नहीं इंद्र की पत्नी साक्षी ने पति को चिंतित देखकर भगवान शंकर का सतवन किया तथा एक पटोली में अक्षत बांधकर उनको दे दिया कथा अनुसार इस पोटली में 11 प्रबंध दिखाया तथा विजय श्री इंद्र को मिली इसी की बात इंद्रियों के द्वारा रक्षा सूत्र बांधकर देवताओं के विजय श्री की कामना की जाती है एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर वध के पश्चात समस्त देवगढ़ देवी भगवती के पास गए उनका प्रस्ताव गाने के बाद निवेदन किया कि कोई ऐसा उपाय करें जिससे अपना संस्मरण सदैव रहे तथा राजपाट जाने का भय ना हो हम जब भी पुकारे आप सहित याहिर तक आ जाएं जब देवी ने शंकर जी से देवताओं को रक्षा सूत्र देने का आग्रह किया जिससे देवता भय मुक्त हो सके देवाधिदेव शंकर ने ऐसा रक्षा सूत्र मां भगवती के हाथ में रखते हुए कहा जो इस रक्षा सूत्र को शिवानी पूर्णिमा को बांधे गा उससे भय नहीं लगेगा भगवान शंकर ने उस रक्षा सूत्र के कई सूत्र हो गए देवी ने सभी देवताओं की कलाई पर उसे बांध दीया तथा वचन दिया कि देव गणों द्वारा पुकारने पर यह अवश्य आएगी देवताओं ने भी रक्षा सूत्र का पूर्णता पालन करने का वचन दिया
ऐतिहासिक आधार-मुस्लिम काल में यही रक्षा सूत्र राखी बन गया इतिहास वादी इस कथा को सत्य माने या असत्य मगर वर्षों से रक्षाबंधन पर्व के साथ यह ऐतिहासिक कथा भी जुड़ी है कि मेवाड़ की रानी कर्मावती ने मुगल सम्राट के मुंह को राखी भेज कर मदद मांगी थी और हिमायू ने कर्म पति के लिए रक्षा वाचक का कार्य किया था
अन्य आधार-प्राचीन काल में ऋषि दर्शन पूर्णिमा को मासिक य की पूर्णाहुति करते थे नया यूज पाती धारण करना तथा अतिथियों के लिए तड़प कर्म भी इसी दिन संपन्न होता था इन्हीं कारणों में इसका नाम स्वर्ण उपक्रम भी पड़ गया यज्ञ के अंत में रक्षा सूत्र बांधा जाता था इस परंपरा का निर्णय आज भी ब्राह्मण रक्षाबंधन के दिन अपने यजमान ओं को रक्षा सूत्र बांधकर करते हैं
रक्षाबंधन पर्व का वर्तमान स्वरूप-वर्तमान युग अर्थ प्रधान है अतः पर्व के पीछे की धार्मिक आस्था में विश्वास तथा परंपराएं तो समय स्वार्थपरता सिमट के रिश्तो की आंधी में ना जाने कहां बह गए रह गया पर्व का संकुचित रूप से स्वप्रेरणा निक कथाओं को विज्ञान की कसौटी पर कसा जाता है आता प्रमाणिकता के अभाव में यह अवश्य लगने लगी है पूर्व काली वैदिक यज्ञ तथा वेदों के पठन-पाठन तक का स्थान नवीन योग पवित्र धारण करने तथा हवन आहुति तक सिमट गया है मुस्लिम कालीन रक्षिका रूप बाजार में बिकने वाली महंगी रेशमी राखी ने ले लिया है जिससे बहन भाई की कलाई पर बांध की आवश्य है मगर भावना कम और पर्व निर्वाह तथा दक्षिणा प्राप्ति की प्रबलता यहां देखी जा सकती है आधुनिक युग में इस पर्व के भीतर की आत्मा लुप्त हो जा रही है मगर इस सत्य को नहीं भूला जा सकता कि ऐसे पर्व रिश्तो में मिठास बोलते हैं विवाह हो परंतु यह स्थिति की व्यवस्था में भी रक्षाबंधन तथा भाई दूज जैसे त्योहार सुंदर बेटी बहन को भाई की यादें ताजा करवा देते हैं पर्व के साथ ही हो आती है बाबुल के आंगन की स्मृतियां बचपन के खेल भाई से रूठना मनाना स्मृतियों की ताजगी होठों पर मुस्कान तथा आंखों में आंसू बनकर उभरती हैं पल भर के लिए मन घरेलू व्यवस्थाओं को छोड़ मिलन के लिए आतुर हो जाता है इन्हीं क्षणों में अचानक भाई द्वारा पर आ गए तो भावनाओं का आवेदन आना स्वभाविक ही हो उठता है
पर्वों का बाजारीकरण-आज के युग में पर्वों का बाजारीकरण होने लगा है रक्षाबंधन पर भी इससे अछूता नहीं है बाजारों में तरह-तरह की राखियां मिलती है अब राशियों के साथ देसी विदेशी कंपनियों के कार्ड भी बिकते हैं जिसमें रक्षाबंधन के आदेश लिखे जाते हैं म्यूजिकल राखियां भी दुकानों पर देखी जा सकती हैं लोग इंटरनेट पर राखी भेजने लगे
उपसंहार -पर वो जिंदगी में हर्ष उल्लास उमंग और प्रेम का प्रसारण करते हैं यह संस्कृति की धरोहर है अतः उन्हें विश्वास तथा प्रेम पूर्वक ही मानना चाहिए रक्षाबंधन भावना का पर्व है रक्षा के संकल्प 1 दिन है अतः अच्छा ही होगा कि बीएफ सीखता दिल के रिश्तो से दूर ही है इस सत्य को विश रमत नहीं किया जा सकता कि कृषि मात्रा व्यवसायिक ता प्रभु की आत्मा को कुचल दी है जबकि हर जगह निश्छल था तथा आत्मिक शुद्धता इनमें प्राणों का संचार करती है
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