Hindi, asked by balahadap, 8 months ago

ram ne pershuram se kya nivedan kiya?

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Answered by devsinghal164
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Explanation:

परशुरामजी के भ‍गवान विष्‍णु का छठा अवतार माना जाता है। भगवान परशुराम की जयंती बैसाख मास के शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। इस दिन अक्षय तृतीया का त्‍योहार भी धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार देशभर में लॉकडाउन के कारण सोशल मीडिया पर यह अपील की जा रही है कि भगवान परशुराम की जयंती दीपोत्‍सव के रूप में मनाई जाए। हिंदू धर्म में विशेष त्‍योहारों पर गंगा में स्‍नान का विशेष महत्‍व है। इसलिए परशुराम जयंती पर भी गंगा स्‍नान की परंपरा चली आ रही है। मगर इस बार लोगों के लिए गंगा में स्‍नान कर पाना संभव नहीं होगा, तो वह घर पर ही स्‍नान के जल में गंगाजल मिलाकर यह पुण्‍य प्राप्‍त कर सकते हैं। भगवान परशुराम विष्णु के ऐसे अवतार हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि यह चिरंजीवी हैं और हनुमानजी, अश्वत्थामा की तरह सशरीर पृथ्वी पर मौजूद हैं।

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2/8 भगवान परशुराम के जन्‍म की कहानी

भगवान परशुराम के जन्‍म की कहानी बहुत ही विचित्र है। यह ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। ब्राह्मण होते हुए भी इनमें क्षत्रियों के गुण आ गए थे। इसकी एक रोचक कथा है। प्राचीन काल में कन्‍नौज के राजा थे गाधि। उनकी पुत्री का नाम सत्‍यवती था। सत्‍यवती का विवाह भृगु ऋषि के पुत्र से हुआ था। संतान की कामना से सत्यवती अपने ससुर भृगु ऋषि से आशीर्वाद लेने गईं। सत्यवती की मां को भी कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसने ऋषि भृगु से माता के लिए संतान का आशीर्वाद मांगा। ऋषि से हुआ था। भृगु ऋषि ने सत्यवती को दो फल दिए और बताया कि स्नान करने के बाद सत्यवती और उनकी माता को पुत्र की इच्छा लेकर पीपल और गूलर के पेड़ का आलिंगन करना है। फिर इन फलों का सेवन करना है।

3/8 सत्‍यवती की मां को आ गया लालच

सत्‍यवती की मां के मन में लालच आ गया और उन्‍होंने दोनों फलों की अदला-बदली कर दी। सत्‍यवती का फल उन्‍होंने खुद खा लिया और बेटी को अपना वाला फल दे दिया। जब भृगु ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्होंने सत्यवती से कहा कि अब तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय गुणों वाला होगा। इससे परेशान होकर सत्यवती ने कहा कि ऐसा ना हो। भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय गुणों वाला हो जाए। कुछ समय बाद सत्यवती के गर्भ से महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ। युवा होने पर महर्षि जमदग्नि का विवाह रेणुका से हुआ। इस तरह परशुराम का जन्म हुआ, जो जन्म से ब्राह्मण होते हुए भी कर्म से क्षत्रिय गुणों वाले थे।

4/8 21 बार किया पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन

भगवान परशुराम के बारे में कहा जाता है कि वह न्‍याय के देवता हैं और उन्‍होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। परशुरामजी ने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए ऐसा किया था। दरअसल हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन अपने बल और घमंड की वजह ब्राह्मणों पर बहुत अत्‍याचार करते थे। परशुरामजी को यह बात पसंद नहीं थी।

5/8 परशुरामजी और गणेशजी का युद्ध

भगवान परशुराम अपने भीषण क्रोध के लिए जाने जाते हैं। उनके क्रोध की यह स्थिति थी कि उन्‍होंने एक बार भगवान गणेश को भी युद्ध के लिए भी ललकारा जब गणेशजी ने उन्हें कैलास जाने से रोक दिया। गणेशजी और परशुरामजी में भयंकर युद्ध हुआ। क्रोध में आकर भगवान शिव के फरसे से परशुरामजी ने गणेशजी के एक दांत काट डाले। इसके बाद से ही गणेशजी एकदंत कहलाने लगे।

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6/8 अपनी ही माता का वध किया

परशुरामजी की माता रेणुका हवन के लिए जल लेने नदी के तट पर आईं थी। गंधर्वराज और अप्सराओं की जलक्रीड़ा देखने में वह इतनी आसक्त हो गईं कि हवन के लिए समय पर जल लेकर नहीं पहुंच सकीं। हवन काल बीत जाने के कारण ऋषि जमदग्नि, रेणुका पर अत्यधिक क्रोधित हुए। उनका क्रोध इतना तीव्र था कि उन्होंने अपने पुत्रों को माता का वध करने का आदेश दे दिया। लेकिन किसी पुत्र ने इस आदेश को स्वीकार नहीं किया। अंत में परशुरामजी से जब पिता जमदग्नि ने माता का वध करने के लिए कहा तो पिता के आदेश पर उन्होंने माता का वध कर दिया। हलांकि बाद में पिता से वरदान में माता के जीवित होने का वरदान मांग लिया और माता फिर से जीवित हो गईं।

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7/8 जब राम से मिले परशुराम

रामावतार के समय भगवान राम और परशुराम की मुलाकात सीता स्वयंवर के समय हुई थी जब भगवान शिव के धनुष को भंग करने के लिए परशुरामजी राम का वध करने आए। लेकिन जब भगवान विष्णु के शारंग धनुष से भगवान राम ने बाण का संधान कर दिया तो परशुरामजी ने भगवान राम की वास्तविकता को जान लिया और आशीर्वाद देकर चले गए।

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8/8 राम ने दिय परशुराम को उपहार मिला श्रीकृष्ण को

तस्वीर : महाभारत

भगवान परशुराम के विषय में पुराणों में बताया गया है कि वह चिरंजीवी हैं। सतयुग से लेकर त्रेता और द्वापर युग में उनकी मौजूदगी की कथा मिलती है। त्रेतायुग में भगवान राम के विवाह काल में परशुराम महेंद्र पर्वत से आए थे और भगवान राम को शिव धनुष तोड़ने का दंड देना चाहते थे। लेकिन जब उन्हें भगवान राम के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हुआ तो वह राम को प्रणाम करके चले गए। इस समय भगवान राम ने परशुरामजी को अपना सुदर्शन चक्र भेंट किया और उनसे निवेदन किया कि द्वापर युग में जब उनका अवतार होगा तब उन्हें इसकी जरूरत होगी। जब श्रीकृष्ण ने द्वापर में अवतार लिया तब परशुरामजी ने धर्म की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र सौंप दिया।

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