रमजान के पूरे 30 रोजों बाद ईद आई है कितना मनोहर कितना सुहावना प्रभात है वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है खेतों में कुछ अजीब रौनक है आज का सूर्य देखो कितना प्यारा कितना शीतल है मानव संसार को ईद की बधाई दे रहा है गांव में कितनी हलचल है ईदगाह जाने की तैयारी हो रही है
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रमजान के पूरे 30 रोजों बाद ईद आई है कितना मनोहर कितना सुहावना प्रभात है, वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है। आज का सूर्य देखो कितना प्यारा कितना शीतल है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है, ईदगाह जाने की तैयारी हो रही है।
यह गद्यांश मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी ‘ईदगाह’ से लिया गया है। इस गद्यांश में प्रकृति के मनोरम दृश्य का वर्णन किया गया है, जो ईद वाले दिन दिखाई दे रहा है। ईदगाह कहानी एक 8 वर्षीय बालक ‘हामिद’ और उसकी बूढ़ी दादी ‘अमीना’ के आपसी स्नेह संबंध की कहानी है। बूढ़ी दादी और उनका अनाथ पोता दोनों बेहद गरीब हैं, बूढ़ी दादी तो पोते के लिये मेले जाने के लिये किसी तरह कुछ पैसे देती है ताकि उनका पोता मेला घूम कर आये और नन्ना हामिद अपनी बूढ़ी दादी की खातिर उन पैसों को अपने ऊपर खर्च न करते हुये अपनी बूढ़ी दादी के लिए चिमटा लेकर आता है, ताकि उसकी बूढ़ी दादी का हाथ रोटी पकाते समय जल ना जाए। यह कहानी एक नन्हे बालक के एक परिपक्व व्यक्ति के समान किए गए व्यवहार का उदाहरण प्रस्तुत करती है।
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Explanation:
रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद आज ईद आई है।। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है! वृक्षों पर कुछ अजोब हरियाली है। खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है। मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है! ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। बार-बार जेब से खजाना निकालकर गिनते हैं। महमूद गिनता है, एक-दो, दस-बारह। उसके पास बारह पैसे हैं। मोहसिन के पास पंद्रह पैसे हैं। इन्हीं अनगिनत पैसों से अनगिनत चीजें लाएँगे-खिलौने, मिठाइयाँ, बिगुल, गेंद और न जाने क्या-क्या और सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद। वह भोली सूरत का चार-पाँच साल का दुबला-पतला लड़का। उसके पिता गत वर्ष हैजे की भेंट हो गए थे और माँ न जाने क्यों पीली होती होती एक दिन मर गई। किसी को पता न चला कि क्या बीमारी थी। अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोदी में सोता है और उतना ही प्रसन्न रहता है। उसके अब्बाजान रुपए कमाने गए हैं। अम्मीजान अल्लाह मियाँ के घर से उसके लिए बहुत-सी अच्छी चीजें लाने गई हैं, इसलिए हामिद प्रसन्न है। आशा तो बड़ी