Ramanujan Jivan parichay aur ganit me yogdan
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जन्म: 22 दिसम्बर 1887
मृत्यु: 26 अप्रैल 1920
कार्यक्षेत्र: गणित
उपलब्धियां: लैंडॉ-रामानुजन् स्थिरांक, रामानुजन्-सोल्डनर स्थिरांक, रामानुजन् थीटा फलन, रॉजर्स-रामानुजन् तत्समक, रामानुजन् अभाज्य, कृत्रिम थीटा फलन, रामानुजन् योग
दुनिया में कभी-कभी ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं जन्म लेती हैं जिनके बारे में जानकार सभी आश्चर्य चकित रह जाते हैं। महान गणितग्य श्रीनिवास अयंगर रामानुजन एक ऐसी ही भारतीय प्रतिभा का नाम है जिनपर न केवल भारत को परन्तु पूरे विश्व को गर्व है। महज 33 वर्ष की उम्र में शायद ही किसी वैज्ञानिक और गणितग्य ने इतना कुछ किया हो जितना रामानुजन ने किया। यह आश्चर्य की ही बात है कि किसी भी तरह की औपचारिक शिक्षा न लेने के बावजूद उन्होंने उच्च गणित के क्षेत्र में ऐसी विलक्षण खोजें कीं जिससे इस क्षेत्र में उनका नाम हमेशा के लिए अमर हो गया। ये न केवल भारत बल्कि समूचे विश्व का दुर्भाग्य था कि गणित का ये साधक मात्र तैंतीस वर्ष की आयु में तपेदिक के कारण परलोक सिधार गया।
रामानुजन बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि इन्होंने स्वयं गणित सीखा और अपने चिर जीवनकाल में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। उनके द्वारा दिए गए अधिकांश प्रमेय गणितज्ञों द्वारा सही सिद्ध किये जा चुके हैं। उन्होंने अपने प्रतिभा के बल पर बहुत से गणित के क्षेत्र में बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनपर आज भी शोध हो रहा है। हाल ही में रामानुजन के गणित सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये और इस महान गणितग्य को सम्मानित करने के लिए रामानुजन जर्नल की स्थापना भी की गई है।
प्रारंभिक जीवन
श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को तमिल नाडु के कोयंबटूर के ईरोड नामक गांव में एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर और माता का नाम कोमलताम्मल था। जब बालक रामानुजन एक वर्ष के थे तभी उनका परिवार कुंभकोणम में आकर बस गया था। इनके पिता एक स्थानिय व्यापारी के पास मुनीम का कार्य करते थे। शुरू में बालक रामानुजन का बौद्धिक विकास दूसरे सामान्य बालकों जैसा नहीं था और वह तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे, जिससे उनके माता-पिता को चिंता होने लगी। जब बालक रामानुजन पाँच वर्ष के थे तब उनका दाखिला कुंभकोणम के प्राथमिक विद्यालय में करा दिया गया।
पारंपरिक शिक्षा में रामानुजन का मन कभी भी नहीं लगा और वो ज्यादातर समय गणित की पढाई में ही बिताते थे। आगे चलकर उन्होंने दस वर्ष की आयु में प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सर्वोच्च अंक प्राप्त किया और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल गए।
रामानुजन बड़े ही सौम्य और मधुर व्यवहार के व्यक्ति थे। वह इतने सौम्य थे कि कोई इनसे नाराज हो ही नहीं सकता था। धीरे-धीरे इनकी प्रतिभा ने विद्यार्थियों और शिक्षकों पर अपना छाप छोड़ना शुरू कर दिया। वह गणित में इतने मेधावी थे कि स्कूल के समय में ही कॉलेज स्तर का गणित पढ़ लिया था। हाईस्कूल की परीक्षा में इन्हें गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक लाने के कारण छात्रवृत्ति मिली जिससे कॉलेज की शिक्षा का रास्ता आसान हो गया।
उनके अत्यधिक गणित प्रेम ने ही उनकी शिक्षा में बाधा डाला। दरअसल, उनका गणित-प्रेम इतना बढ़ गया था कि उन्होंने दूसरे विषयों को पढना छोड़ दिया। दूसरे विषयों की कक्षाओं में भी वह गणित पढ़ते थे और प्रश्नों को हल किया करते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि कक्षा 11वीं की परीक्षा में वे गणित को छोड़ बाकी सभी विषयों में अनुत्तीर्ण हो गए जिसके कारण उनको मिलने वाली छात्रवृत्ति बंद हो गई। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से ही ठीक नहीं थी और छात्रवृत्ति बंद होने के कारण कठिनाईयां और बढ़ गयीं। यह दौर उनके लिए मुश्किलों भरा था।
घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए रामानुजन ने गणित के ट्यूशन और कुछ एकाउंट्स का काम किया। वर्ष 1907 में उन्होंने बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी लेकिन इस बार भी वह अनुत्तीर्ण हो गए। इस असफलता के साथ उनकी पारंपरिक शिक्षा भी समाप्त हो गई।