ramshakar tivari ka jivan parichay
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अपराधी के राजनेता बनने की और नेता के अपराधी बनने की लिस्ट हमारे देश में काफी लंबी है। लेकिन अपराध से राजनीति की और राजनीति से अपराध की दोस्ती कराने वालों के लिस्ट की जब बात की जाती है तो सबसे पहला नाम आता है गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी का। हरिशंकर तिवारी को, जिन्हें राजनीति के अपराधीकरण का श्रेय जाता है।
अपराधी के राजनेता बनने की और नेता के अपराधी बनने की लिस्ट हमारे देश में काफी लंबी है। लेकिन अपराध से राजनीति की और राजनीति से अपराध की दोस्ती कराने वालों के लिस्ट की जब बात की जाती है तो सबसे पहला नाम आता है गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी का। हरिशंकर तिवारी को, जिन्हें राजनीति के अपराधीकरण का श्रेय जाता है। गोरखपुर जिले की एक विधानसभा सीट चिल्लूपार 1985 में एकाएक उस वक्त चर्चा में आई जब हरिशंकर तिवारी नाम के निर्दलीय उम्मीदवार ने जेल से चुनाव लड़ा और जीता। हरिशंकर तिवारी के चुनाव जीतने के बाद से ही भारतीय राजनीति में 'अपराध' के डायरेक्ट एंट्री का दरवाजा भी खुल गया। ये कहना गलत नहीं होगा कि इसके बाद से ही भारत में अपराध के राजनीतिकरण की बहस शुरू हुई।
अपराधी के राजनेता बनने की और नेता के अपराधी बनने की लिस्ट हमारे देश में काफी लंबी है। लेकिन अपराध से राजनीति की और राजनीति से अपराध की दोस्ती कराने वालों के लिस्ट की जब बात की जाती है तो सबसे पहला नाम आता है गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी का। हरिशंकर तिवारी को, जिन्हें राजनीति के अपराधीकरण का श्रेय जाता है। गोरखपुर जिले की एक विधानसभा सीट चिल्लूपार 1985 में एकाएक उस वक्त चर्चा में आई जब हरिशंकर तिवारी नाम के निर्दलीय उम्मीदवार ने जेल से चुनाव लड़ा और जीता। हरिशंकर तिवारी के चुनाव जीतने के बाद से ही भारतीय राजनीति में 'अपराध' के डायरेक्ट एंट्री का दरवाजा भी खुल गया। ये कहना गलत नहीं होगा कि इसके बाद से ही भारत में अपराध के राजनीतिकरण की बहस शुरू हुई। हरिशंकर तिवारी ने पूर्वांचल की राजनीति बदल दी
अपराधी के राजनेता बनने की और नेता के अपराधी बनने की लिस्ट हमारे देश में काफी लंबी है। लेकिन अपराध से राजनीति की और राजनीति से अपराध की दोस्ती कराने वालों के लिस्ट की जब बात की जाती है तो सबसे पहला नाम आता है गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी का। हरिशंकर तिवारी को, जिन्हें राजनीति के अपराधीकरण का श्रेय जाता है। गोरखपुर जिले की एक विधानसभा सीट चिल्लूपार 1985 में एकाएक उस वक्त चर्चा में आई जब हरिशंकर तिवारी नाम के निर्दलीय उम्मीदवार ने जेल से चुनाव लड़ा और जीता। हरिशंकर तिवारी के चुनाव जीतने के बाद से ही भारतीय राजनीति में 'अपराध' के डायरेक्ट एंट्री का दरवाजा भी खुल गया। ये कहना गलत नहीं होगा कि इसके बाद से ही भारत में अपराध के राजनीतिकरण की बहस शुरू हुई। हरिशंकर तिवारी ने पूर्वांचल की राजनीति बदल दीहरिशंकर तिवारी उस वक्त राजनीति में उठे थे जब देश में नेता इंदिरा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। देश समाजवाद की लड़ाई लड़ रहा था लेकिन गोरखपुर के कुछ लोगों ने अपने लिए अलग जगह बना ली। अपराध को राजनीति में तब्दील कर दिया। हरिशंकर तिवारी ने जाने या अनजाने में राजनीति ही बदल दी। जहां जनता बिजली, पानी, सड़क खोजने लगी थी, अचानक लोग बंदूकें गिनने लगे थे, गाड़ियों के काफिले देखने लगे थे, ये देखने लगे कि किसकी गाड़ी के सामने कौन रास्ता बदल लेता है।