rani laxmibai ka charitra chitran
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वीरांगना लक्ष्मीबाई के जन्म के वर्ष को लेकर इतिहासकारों का अलग- अलग मत है। यद्यपि जन्मतिथि पर सबकी एक राय है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि महारानी का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में हुआ था, जबकि अन्य इतिहासकार जन्मतिथि 19 नवंबर 1935 बताते हैं। इसी कारण 18 जून 1858 को मृत्यु के समय उनकी उम्र 23 वर्ष और 28
भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा जरूर होती है। रानी लक्ष्मीबाई ना सिर्फ एक महान नाम है बल्कि वह एक आदर्श हैं उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर मानती हैं और उनके लिए भी एक आदर्श हैं जो महिलाएं सोचती है कि वह महिलाएं हैं तो कुछ नहीं कर सकती। देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं।
रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झांसी की रानी और भारत की स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम वनिता थीं। भारत को दासता से मुक्त करने के लिए सन् 1857 में बहुत बड़ा प्रयास हुआ। यह प्रयास इतिहास में भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम या सिपाही स्वतंत्रता संग्राम कहलाता है
रानी लक्ष्मीबाई
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1835 को काशी के असीघाट, वाराणसी में हुआ था. इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम ‘भागीरथी बाई’ था. इनका बचपन का नाम ‘मणिकर्णिका’ रखा गया परन्तु प्यार से मणिकर्णिका को ‘मनु’ पुकारा जाता था.
पिता मोरोपंत तांबे एक साधारण ब्राह्मण और अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के सेवक थे। माता भागीरथी बाई सुशील, चतुर और रूपवती महिला थीं।
मनु जब मात्र चार साल की थीं, तब उनकी मां का निधन हो गया. पत्नी के निधन के बाद मोरोपंत मनु को लेकर झांसी चले गए। यहीं पर उन्होंने मल्लविद्या, घुड़सवारी और शस्त्रविद्याएँ सीखीं।
चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए उनके पिता मोरोपंत मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले जाते थे जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया था। बाजीराव मनु को प्यार से ‘छबीली‘ बुलाने
मनु का विवाह सन् 1842 में झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ बड़े ही धूम–धाम से सम्पन्न हुआ। विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया।
गंगाधर राव की पत्नी रमाबाई का निःसंतान निधन बहुत पहले हो चुका था। इसकारण 1843 ई. में झांसी का शासक बनते ही उन्होंने मोरोपन्त ताम्बे की 9 वर्षीय पुत्री मणिकर्णिकासे दूसरा विवाह कर लिया।मणिकर्णिका का जन्म 16 नवम्बर 1835 में हुआ था। विवाह के उपरांत ससुराल में उनका नाम “लक्ष्मीबाई” रखा गया। लक्ष्मीबाई की माँ भागीरथी बाई का देहावसानबहुत पहिले हो चुका था। इस कारण उनके पिता मोरोपन्त ताम्बे बिठूर छोड़कर अपनी पुत्री लक्ष्मीबाई के साथ ही रहने लगे थे।
गंगाधर राव ने अपने विधुर श्वसुर मोरोपन्त ताम्बे का दूसरा विवाह गुरसरांय केवासुदेव शिवराव निंबालकर की पुत्री चिमड़ाबाई से करवा दिया। 1851 में 16 वर्ष की उम्र में लक्ष्मीबाई को एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो 3 माह बाद स्वर्गवासी हो गया। इस समय गंगाधर राव की आयु58 वर्ष थी। इस कारण वद्धावस्था में पुत्रशोक ने उन्हें जर्जर कर दिया। वह अस्वस्थ हो गये।जावन की आशा शेष न देखकर उन्होंने वैध उत्तराधिकारी न होने के कारण अपनी सौतेली सासचिमड़ाबाई के भाई आनन्दराव को जो गुरसरांय के शासक वासुदेव शिवराम निंबालकर के पुत्र थे, को गोद ले लिया । आनन्दराव का नाम दामोदर राव निंबालकर रखा गया । 21 नवंबर 1853 ई.को गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी।
मुसीबतों का पहाड़
कंपनी सरकार ने लक्ष्मीबाई द्वारा दामोदर राय को गोद लिया जाना अवैध माना,क्योंकि वह गंगाधर राव के वशंज नहीं थे, वह लक्ष्मीबाई के मामा थे। भारतीय हिंदू धर्म औरपरंपरा के अनुसार मामा को भांजी का पुत्र नहीं बनाया जा सकता था। अतः ब्रिटिश सरकार नेनिर्णय दिया कि 1804 ई. और 1842 ई. की संधियों के अंतर्गत झांसी ठिकाना शिवराव भाऊ औररामचंद्र राव के वैध वंशज उत्तराधिकारियों के लिए ही मान्य है इसके अतिरिक्त झांसी राज्यब्रिटिश सरकार के अधीन द्वितीय श्रेणी का राज्य था इस कारण गोद को वैध या अवैध करनेका ब्रिटिश सरकार की इच्छा पर निर्भर करता था। इसके पूर्व भी 1835 ई. में रामचंद्र राव कीमृत्यु के बाद उनकी मां ने सागर के कृष्णराव को गोद लेने का प्रयत्न किया पर कंपनी ने अमान्यकर दिया था।
इस प्रकार तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने वैध वंशज, उत्तराधिकारी केअभाव में लक्ष्मीबाई का दावा निरस्त कर दिया और झांसी राज्य को कंपनी के साम्राज्य में विलीनकर लिया गया। अल्क खुदा का मुक्त भावशाल कामरानी लक्ष्मीबाई को जीवन निर्वाह के लिए व्यक्तिगत संपत्ति के अतिरिक्त 60.000रूपया वार्षिक प्रीवीपर्स तथा शहर में निर्मित एक महल (रानी महल वर्तमान राजकीय संग्रहालय)रहने हेतु प्रदान कर दिया गया। साथ1853 ई. में कंपनी सरकार ने झांसी के सारे अधिकार अपने हाथों में केंद्रित कर लिय। रानी लक्ष्मीबाई इससे कंपनी सरकार पर असंतुष्ट हुई।
रानी ने जितने दिन भी शासन किया। वे अत्यधिक सूझबूझ के साथ प्रजा के लिए कल्याण कार्य करती रही। इसलिए वे अपनी प्रजा की स्नेहभाजन बन गईं थीं।
रानी बनकर लक्ष्मीबाई को पर्दे में रहना पड़ता था। स्वच्छन्द विचारों वाली रानी को यह रास नहीं आया। उन्होंने क़िले के अन्दर ही एक व्यायामशाला बनवाई और शस्त्रादि चलाने तथा घुड़सवारी हेतु आवश्यक प्रबन्ध किए।
रानी लक्ष्मीबाई की बदौलत झांसी की आर्थिक स्थिति में अप्रत्याशित सुधार हुआ. इसके बाद मनु का नाम लक्ष्मीबाई रखा
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