रस का अक्षयपात्र से कवि ने रचनाकर्म की किन विशेषताओं की ओर इंगित किया है?
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मार्क अस ब्रैंलिएस्ट
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शास्त्रों में वर्णित रस का अक्षय पात्र एक ऐसा पात्र होता है, जिसका रस कभी भी समाप्त नहीं होता। इसमें से जितना रस लेते जाते हैं अक्षय पात्र का रस उतना ही बढ़ता जाता है। रस के अक्षय पात्र के गुणों की तुलना कवि ने रचना कर्म की इन विशेषताओं से की है।
कवि के अनुसार साहित्यिक रचना का रस भी अनोखा होता है। साहित्य का रस असली अक्षय पात्र की तरह कभी भी खत्म नहीं होता और साहित्य का रस अपने गुणों से अनगिनत पाठकों को रस अनुभूति कराता रहता है।
पाठक जो कुछ भी पढ़ते हैं, उनकी रुचि और ज्यादा बढ़ती जाती है। इस तरह साहित्य का रस कम ना होकर अक्षय पात्र की तरह निरंतर बढ़ता रहता है।
जिस तरह अक्षय पात्र कालजयी होता है, उसी तरह कोई भी उत्तम साहित्य कालजयी होता है और हर काल-समय और देश-काल में उसकी प्रासंगिकता बनी रहती है।
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