रस की अनुभूति इन्हें होती है, किन्हें-
अ. निर्दयी को
ब. कठोर को
स. सम्वेदनहीन को
द. संहृदय को
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परिभाषा-‘रस’ का अर्थ है–‘आनन्द’ अर्थात् काव्य से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, वही ‘रस’ है। इस प्रकार किसी काव्य को पढ़ने, सुनने अथवा अभिनय को देखने पर पाठक, श्रोता या दर्शक को जो आनन्द प्राप्त होता है, उसे ‘रस’ कहते हैं। रस को ‘काव्य की आत्मा’ भी कहा जाता है।
अंग या अवयव-रस के चार अंग होते हैं, जिनके सहयोग से ही रस की अनुभूति होती है। ये चारों अंग या अवयव निम्नलिखित हैं–
1. स्थायी भाव,
2. विभाव,अनुभाव तथा
3. संचारी भाव। स्थायी भाव
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