Hindi, asked by renukasingh3858, 5 months ago

रस के प्रकारों का वर्णन कीजिए​

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Answered by StrangeStark
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Answered by chhaviramsharma9564
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रस किसे कहते है?

काव्य को पढ़ने, सुनने से उत्पन्न होने वाली आनंद की अनुभूति को ही रस कहा जाता हैं।

रस, छंद और अंलकार काव्य के अंग है।

रस को इंग्लिश मे Sentiments कहा जाता है।

रस के अंग

रस के चार अंग स्थाई भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव होते हैं।

1. स्थायीभाव

यह वे भाव है जो मन में स्थाई रूप से स्थापित रहते हैं। इन्हें किसी अन्य भाव के द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता हैं।

अर्थात कुल स्थाई भाव की संख्या 9 हैं क्योंकि रसों की संख्या भी 9 हैं।

भरतमुनि के अनुसार मुख्य रसों की संख्या 8 थी शांत रस को इनके काव्य नाट्य शास्त्र में स्थान नहीं दिया गया।

मूल रूप से रसों की संख्या 9 मानी गई है जिसमें श्रृंगार रस को रस राजा कहा गया।

किन्तु बाद में हिंदी आचार्यों के द्वारा वात्सल्य और भागवत रस को रस की मान्यता मान ली गई।

इस प्रकार कुल रसों की संख्या 11 हो गई अतः स्थाई भाव की संख्या भी 11 हो गई।

प्रत्येक रस का एक स्थाई भाव होता हैं।विभाव

स्थायी भावों के उदबोधक कारण को विभाव कहते हैं विभाव 2 प्रकार के होते हैं।

a) आलंबन विभाव

b) उद्दीपन विभाव

आलंबन विभाव : जिसका आलंबन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते हैं आलंबन विभाव कहलाता हैं।

जैसे : नायक नायिका।

आलंबन विभाव के दो पक्ष होते हैं।

आश्रयालंबन

विषयालंबन

जिसके मन में भाव जगे वह आश्रया लंबन तथा जिसके प्रति या जिसके कारण मन में भाव जगे वह विषया लंबन कहलाता हैं।

उदाहरण : यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जगता हैं तो राम आश्रय होगें और सीता विषय।

उद्दीपन विभाव : जिन वस्तुओं या परिस्थितियों को देखकर स्थायी भाव उद्दीप्त होने लगता हैं उद्दीपन विभाव कहलाता हैं।

जैसे : चाँदनी, कोकिल कूजन, एकांत स्थल, रमणीय उधान, नायक या नायिका की शारीरिक चेष्टाएं आदि।

अनुभाव

मनोगत (मन में उतपन्न) भाव को व्यक्त करने वाली शारीरिक प्रक्रिया अनुभव कहलाती हैं।

यह 8 प्रकार की होती हैं स्तंभ, स्वेद, रोमांच, भंग, कंप, विवर्णता, अश्रु और प्रलय

5. संचारी भाव

हृदय/मन में संचरण (आने-जाने) वाले भावों को ही संचारी भाव कहा जाता हैं

यह भाव स्थाई भाव के साथ उतपन्न होकर कुछ समय बाद समाप्त हो जाते हैं।

अर्थात यह स्थाई भाव मन में स्थाई रूप से नहीं रहते हैं।

संचारी भाव की संख्या 33 होती हैं।

हर्ष, विषाद, श्रास, लज्जा, ग्लानि, चिंता, शंका, असूया, अमर्ष, मोह, गर्व, उत्सुकता, उग्रता, चपलता, दीनता, जड़ता, आवेग, निर्वेद, धृति, मति, बिबोध, वितर्क, श्रम, आलस्य, निद्रा, स्वप्न, स्मृति, मद, उन्माद, अवहितथा अपस्मार व्याधि मरण।

रस के प्रकार

रस 11 प्रकार के होते हैं।

1. श्रृंगार रस

जहां नायक और नायिका की अथवा महिला पुरुष के प्रेम पूर्वक श्रेष्ठाओं क्रिया कलापों का श्रेष्ठाक वर्णन होता हैं वहां श्रृंगार रस होता हैं।

श्रृंगार रस का स्थाई भाव रति होता हैं।

यह दो प्रकार का होता हैं।

संयोग श्रृंगार

वियोग श्रृंगार

उदाहरण :

राम को रूप निहारत जानकी,

कंगन के नग की परछाई।

याते सवै सुध भूल गई,

कर टेक रही पल टारत नाही।।

2. हास्य रस

किसी वस्तु या व्यक्ति की घटनाओं और भावनाओं से संबंधित काव्य को पढ़ने से उत्पन्न रस को हास्य रस कहते हैं।

हास्य रस का स्थाई भाव हसी होता हैं।

उदाहरण :

इस दौड़-धूप में क्या रखा हैं।

आराम करो आराम करो।

आराम जिंदगी की पूजा हैं।।

इससे न तपेदिक होती।

आराम शुधा की एक बूंद।

तन का दुबलापन खो देती।।

3. करुण रस

इसमें किसी प्रकार की दुख से संबंधित अनुभूति से प्ररेति काव्य रचना को पढ़ने से करुण रस उत्पन्न होता हैं।

करुण रस का स्थाई भाव शोक होता हैं।

उदाहरण :

शोक विकल सब रोवहि रानी।

रूपु सीलु बलू तेजु बखानी।।

करहि विलाप अनेक प्रकारा।

परिहि चूमि तल बारहि बारा।।

4. वीर रस

जब काव्य में उमंग, उत्साह और पराक्रम से संबंधित भाव का उल्लेख होता हैं तब वहां वीर रस की उत्पत्ति होती हैं।

वीर रस का स्थाई भाव उत्साह होता हैं।

उदाहरण :

मैं सत्य कहता हूं, सके सुकुमार न मानो मुझे।

यमराज से भी युद्व को, प्रस्तुत सदा मानो मुझे।।

अदभूत रस

जहां पर किसी आलौरिक क्रिया कलाप आश्चर्य चकित वस्तुओं को देखकर या उन से सम्बंधित घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहाँ पर अदभुत रस होता हैं।

अदभुत रस का स्थाई भाव आश्चर्य होता हैं।

उदाहरण :

बिनू पद चलै सुने बिनु काना।

कर बिनु कर्म करै विधि नाना।।

6. भयानक रस

जहां भयानक वस्तुओं को देखकर या भय उत्पन्न करने वाले दृश्यों/घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहां पर भयानक रस होता हैं।

भयानक रस का स्थाई भाव भय होता हैं।

उदाहरण :

उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल काल के जालो सी।

चली आ रही फेन उंगलिया फन फैलाए ब्यालो सी।।

7. रौद्र रस

जिस काव्य रचना को पढ़कर या सुनकर हृदय में क्रोध के भाव उत्पन्न होते हैं वहां पर रौद्र रस होता हैं। इस प्रकार की रचनाओं में उत्प्रेरण सम्बन्धी विवरण होता हैं।

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