रस की परिभाषा देते हुए , रस के अवयवो को विस्तार से बताईए
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जिसका अर्थ है संपन्न होना या विद्यमान होना। अतः जो भाव मन में सदा अभिज्ञान ज्ञात रूप में विद्यमान रहता है उसे स्थाई या स्थिर भाव कहते हैं। जब स्थाई भाव का संयोग विभाव , अनुभाव और संचारी भावों से होता है तो वह रस रूप में व्यक्त हो जाते हैं। रति , हास्य , शोक , क्रोध , उत्साह , भय , जुगुप्सा और विस्मय।
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