Science, asked by mansi2709, 1 year ago

रस की परिभाषा उदाहरण सहित

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Answered by Aniketastronaut
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कविता कहानी या उपन्यास को पढ़ने से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे ‘रस‘ कहते हैं। रस काव्य की आत्मा है।” आचार्य विश्वनाथ ने साहित्य-दर्पण में काव्य की परिभाषा देते हुए लिखा है- ‘वाक्यं रसात्मकं काव्यं‘ अर्थात रसात्मक वाक्य काव्य है।

रसों के आधार भाव हैं। भाव मन के विकारों को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- स्थायी भाव और संचारी भाव। यही काव्य के अंग कहलाते है।

स्थायी भाव

रस रूप में पुष्ट होने वाला तथा सम्पूर्ण प्रसंग में व्याप्त रहने वाला भाव स्थाई भाव कहलाता है। स्थाई भाव 9 माने गए हैं किंतु वात्सल्य नाम का दसवां स्थाई भाव भी स्वीकार किया जाता है।

भरत मुनि ने अपने ग्रन्थ नाट्य शास्त्र में 8 रस ही माने हैं।शान्त और वात्सल्य को उन्होंने रस नहीं माना। किन्तु बाद के आचार्यों ने शांत और वात्सल्य को रस माना है जिस कारण अब रस 10 माने जाते हैं। नीचे क्रमशः पहले रस तथा उसके बाद स्थायी भाव दिए गए हैं-




mansi2709: thanks bro
Answered by pathakak9708
9

रस का शाब्दिक अर्थ होता है – आनन्द। काव्य को पढ़ते या सुनते समय जो आनन्द मिलता है उसे रस कहते हैं। रस को काव्य की आत्मा माना जाता है। प्राचीन भारतीय वर्ष में रस का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। रस -संचार के बिना कोई भी प्रयोग सफल नहीं किया जा सकता था। रस के कारण कविता के पठन , श्रवण और नाटक के अभिनय से देखने वाले लोगों को आनन्द मिलता है।


Ras ke Udaharan

चढ़ चेतक पर तलवार उठा करता था भूतल पानी को

राणा प्रताप सर काट-काट करता था सफल जवानी को


बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी


मानव समाज में अरुण पड़ा जल जंतु बीच हो वरुण पड़ा

इस तरह भभकता राजा था, मन सर्पों में गरुण पड़ा


क्रुद्ध दशानन बीस भुजानि सो लै कपि रिद्द अनी सर बट्ठत

लच्छन तच्छन रक्त किये, दृग लच्छ विपच्छन के सिर कट्टत




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mansi2709: thanks sister
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