रस किसे कहते हैं............?
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In Indian aesthetics, a rasa literally means "juice, essence or taste". It connotes a concept in Indian arts about the aesthetic flavour of any visual, literary or musical work that evokes an emotion or feeling in the reader or audience but cannot be described.
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रस शब्द आनन्द का पर्याय है। रसवादी आचार्यों ने काव्य मे रस को ही मुख्य माना है। उन्होंने रस को काव्य की आत्मा कहा हैं। जैसे आत्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नही उसी प्रकार रस के बिना काव्य भी निर्जीव माना जाता हैं।
आज हम रस किसे कहते हैं? परिभाषा भेद प्रकार अंग स्थायी भाव। दसों रसों श्रृंगार रस, हास्य रस, करूण रस, रौद्र रस, वीभत्स रस, भयानक रस, अद्धभुत रस, वीर रस, शान्त रस, और वात्सल्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित जानेगें।
इस लेख को छोड़कर आपको और कही जानें की आवश्यकता नहीं हैं इस लेख में रस के बारें में सम्पूर्ण जानकारी दी गई हैं।
रस किसे कहते है? (Ras kise kahte hai)
काव्य मे रस का अर्थ आनन्द स्वीकार
किया गया है। साहित्य शास्त्र मे रस का अर्थ अलौकिक या लोकोत्तर आनन्द होता हैं।
दूसरे शब्दों में जिसका आस्वादन किया जाये वही रस है। रस का अर्थ आनन्द है अर्थात् काव्य को पढ़ने सुनने या देखने से मिलने वाला आनन्द ही रस है। रस की निष्पत्ति विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से होती है।
रस की परिभाषा (ras ki paribhasha)
कविता, कहानी, नाटक आदि पढ़ने, सुनने या देखने से पाठक को जो एक प्रकार के विलक्षण आनन्द की अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं।
दूसरे शब्दों में " काव्य के पढ़ने सुनने अथवा उसका अभिनय देखने मे पाठक, श्रोता या दर्शक को जो आनंद मिलता है, वही काव्य मे रस कहलाता हैं। रस 10 प्रकार के होते हैं नीचे दसों रस उनके स्थायी भाव के साथ दिए गए हैं---
दसों रस एवं उनके स्थायी भाव
1. श्रृंगार रस का स्थायी भाव = रति
2. हास्य रस का स्थायी भाव = हास
3. करूण रस का स्थायी भाव = शोक
4. रौद्र रस का स्थायी भाव = क्रोध
5. वीभत्स रस का स्थायी भाव = जुगुप्सा
6. भयानक रस का स्थायी भाव = भय
7. अद्धभुत रस का स्थायी भाव = विस्मय
8. वीर रस का स्थायी भाव = उत्साह
9. शान्त रस का स्थायी भाव = निर्वेद
10. वात्सल्य रस का स्थायी भाव = वत्सल
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