रस पहचानिए:
भूषण बसन विलोकत सिय के।
प्रेम विवस मन, कंप पुलक तनु,
नीरज नयन नीर भरे पिच के।
सकुचत कहत सुमिरि उर उमगत,
सील स्नेह सुगुन गन तिर के।
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sayong shringaar ras
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संयोग श्रृंगार रस।
- उपर्युक्त पंक्तियों में संयोग श्रृंगार रस है।
- रस का मतलब होता है आनंद। जब काव्य के किसी रूप से हमें आनंद की अनुभूति होने लगे, वहां रस होता है।
- जिसका स्वाद लिया जा सके वो रस होता है।
- रस की उत्पत्ति का श्रेय भरत मुनि को जाता है। उन्होंने ने सबसे पहले अपनी पुस्तक नाट्यशास्त्र में रस का जिक्र किया और रस के आठ भेद बताए।
- भरतमुनि के अनुसार भाव, विभाव एवम् संचारी भाव के मेल से रस की उत्पत्ति होती है।
- मूल रूप से रस के आठ रूप माने गए हैं — श्रृंगार रस, हास्य रस, रौद्र रस, करूण रस, वीभत्स रस, अद्धभुत रस, भयानक रस, वीर रस। शान्त रस, और वात्सल्य रस बाद में जोड़े गए, जिसके वजह से रसों की संख्या अब दस हो गई है।
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