रस पहचानिये- “एक अचंभा देखा रे भाई । ठाढा सिंह चरावै गाई । पहले पूत पाछेमाई | चेला के गुरु लागे पाई ||"
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Answer:
एक अचम्भा देखा रे भाई, ठाड़ा सिंह चरावै गाई।
पहले पूत पीछे भई माई, चेला के गुरु लगै पाई॥
जल की मछली तरूवर व्याई, पकड़ि बिलाई मुर्गा खाई॥
बैलहि डारि गूति घर लाई, कुत्ता कूलै गई विलाई॥
तलि करि साषा ऊपरि करि मूल। बहुत भांति जड़ लागे फूल।
कहै कबीर या पद को बूझै। ताकू तीन्यू त्रिभुवन सूझै॥
उत्तर:
इस पद में अद्भुत रस है।
व्याख्या:
“एक अचंभा देखा रे भाई । ठाढा सिंह चरावै गाई ।
पहले पूत पाछेमाई | चेला के गुरु लागे पाई ||"
दिया गया पद कबीर की उलटबांसियों का उदाहरण है। संत कबीर ने उलटबांसियों की रचना हठ योग साधना के गूढ़ रहस्यों को प्रस्तुत करने के उद्देश्य के साथ की थी। उनकी लगभग सभी उलटबांसियों में अद्भुत रस की ही व्यंजना होती है क्योंकि इनके भीतर असाधारण व प्रकृति के विपरीत स्वभावों का चित्रण होता है।
उपर्युक्त पंक्तियों में भी कबीर स्वयं कहते हैं कि कहते हैं कि यह एक अचंभा ही है कि शेर खड़ा है और गाय उसे चरा रही है, पहले बेटे का जन्म हो रहा है और उसके बाद माता का, गुरु गुरु चेले के पैर छू रहा है। यह सब घटनाएं अद्भुत रस की अभिव्यक्ति करती हैं।
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