Hindi, asked by akanksha5722, 10 months ago

रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे।।
plz explain it..​

Answers

Answered by PreetiXYZ
262

kavitri khna cha hati hai ki vo apna maanav rupi naav ko katcha daga ki rassi sa kitch rahi hai tadha

vo apna es jivan ma esvar ko pana ke vayardh pryas kar rahi hai

ab unka man ma apna ghar yani prmatma k pass jaana ki chaa baar barr udh rahi hai

HOPE YOU LIKE IT


PreetiXYZ: plz mark as brainlist my answer is right i am sure
PreetiXYZ: welcome
Answered by bhatiamona
329

Answer:

प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने नाव की तुलना अपनी जिंदगी से करते हुए कहा है , वह अपनी सांसो की तुलना कच्ची डोरी से की है ,की वे इसे कच्ची डोरी यानी साँसों द्वारा चला रही हैं। यह जो सांसे है यह कब बंद हो जाएगी किसी को पता नहीं है | वह उस समय का इंतजार कर रही है ,  कब प्रभु उसकी पुकार सुन सुनेंगे और  ज़िन्दगी से पर करेंगे |  

अपने शरीर की तुलना मिट्टी के कच्चे ढांचे से करते हुए कहा की उसे नित्य पानी टपक रहा है यानी प्रत्येक दिन उनकी उम्र काम होती जा रही है। प्रभु से मिलने के सारे प्रयास व्यर्थ होते जा रहे है | मन में प्रभु से मिलने की चाह के लिए व्याकुल होते जा रही  है , भक्त इस उम्मीद से ये सब कर रहा है कि कभी तो भगवान उसकी पुकार सुनेंगे और उसे भवसागर से पार लगायेंगे।

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