रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मैं नाव ।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार ।।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी मैं उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे।।
(a)
'कच्चे धागे की रस्सी' किसे कहा गया है?
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