रसखान 'ब्रजभूमि के 'करील कुंजों ' पर क्या न्योछावर करना चाहते हैं?
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कवि रसखान ब्रजभूमि के करील कुंजो पर तीनों लोकों का वैभव तक न्योछावर करने को तैयार हैं।
रसखान कहते हैं कि...
या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं।।
रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग़ तड़ाग निहारौं।
कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं।।
अर्थात ग्वालों की लाठी और कंबल के लिए अगर उन्हें तीनों लोगों का वैभव त्यागना पड़े तो वे उसके लिए भी तैयार हैं। वह ब्रज के सौंदर्य को भोगने के लिए आठों सिद्धि और नौ निधियों का सुख भी छोड़ने के लिए तैयार हैं। वह अपनी आँखों से ब्रज के वन, बाग-बगीचों और तालाबों को अपने पूरे जीवन भर निहारते रहना चाहते हैं। वह ब्रज की उन कांटेदार झाड़ियों के लिए सोने के वैभव भरे सौ महलों का सुख भी छोड़ने के लिये तैयार हैं।
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