रसखान की भाषा की दो विशेषताएं बताइए
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घनानन्द में भाषा-सौन्दर्य उनकी 'लक्षणा' के कारण माना जाता है। रसखान की भाषा की विशेषता उसकी स्वाभाविकता है। उन्होंने ब्रजभाषा के साथ खिलवाड़ न कर उसके मधुर, सहज एवं स्वाभाविक रूप को अपनाया। साथ ही बोलचाल के शब्दों को साहित्यिक शब्दावली के विकट लाने का सफल प्रयास किया।
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रसखान की भाषा की दो विशेषताएं:
- रसखान जी ने ब्रज भाषा में काव्य की रचना की है।
- वो मुक्त चंद शैली का प्रयोग किया करते थे।
रसखान
- रसखान जी का जन्म 1548 में हुआ था। उनका पूरा नाम सैयद इब्राहिम था।
- उन्होंने श्री कृष्ण जी के बारे में लिखा- उनकी सुंदरता, लीला आदि।
- इनकी भाषा मधुर और सरस है।
- यह अपने काव्यों में मुहावरों का भी प्रयोग करते थे।
रसखान कविताएँ, काव्या, दोहे:
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, रसखान के दोहे, आवत है वन ते मनमोहन, कर कानन कुंडल मोरपखा, जा दिनतें निरख्यौ नँद-नंदन, सुजान रसखान, प्रेमवाटिका, मानुस हौं तो वही, मोरपखा मुरली बनमाल आदि।
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