रसखान के दोहे sayva
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1) इन सबहीं ते प्रेम है, परे कहत मुनिवर्य... काम क्रोध मद मोह भय, लोभ द्रोह मात्सर्य। ...
2)जो आवत एहि ढिग बहुरि, जात नाहिं रसखान... प्रेम अगम अनुपम अमित, सागर सरिस बखान। ...
3) हरि के सब आधीन पै, हरी प्रेम आधीन... प्रेम रूप दर्पण अहे, रचै अजूबो खेल।
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