रश्मिरथी' के आधार पर कुन्ती के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
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युद्ध में भी मनुष्य के ऊँचे गुणों की पहचान के प्रति ललक का काव्य है ‘रश्मिरथी’। ‘रश्मिरथी’ यह भी संदेश देता है कि जन्म-अवैधता से कर्म की वैधता नष्ट नहीं होती। अपने कर्मों से मनुष्य मृत्यु-पूर्व जन्म में ही एक और जन्म ले लेता है। अंततः मूल्यांकन योग्य मनुष्य का मूल्यांकन उसके वंश से नहीं, उसके आचरण और कर्म से ही किया जाना न्यायसंगत है।
दिनकर में राष्ट्रवाद के साथ-साथ दलित मुक्ति चेतना का भी स्वर है, रश्मिरथी इसका प्रमाण है। दिनकर के अपने शब्दों में, कर्ण-चरित्र का उद्धार, एक तरह से नई मानवता की स्थापना का ही प्रयास है।
रामधारी सिंह दिनकर कर्ण के मुहं से बोलते हुए कृष्ण से कहते हैं कि मेरी माँ (कुंती) तो निर्दयी है।
"माँ का पय भीं पिया मैंने ,उल्टा अभिशाप लिया मैंनेI
वह तो यशस्विनी बनी रही, सबकी भौं मुझ पर तनी रहीI"
कुन्ती के चरित्र की विशेषता:
1- कुंती जो की कुंवारी माँ बनी थी, वह लोक-लज्जा से डर गयीं और ममता का गला घोट, कर्ण को अकेले छोड़ आई। इस से पता चलता हैं कि उसे समाज से बहुत भय था।
2- कुंती को अपना राज्य बहुत प्रिय था, क्योंकि वह अपने बेटे युद्धिष्धिर को राजा के रूप में देखना चाहती थी।
3- कुंती का पुत्र प्रेम एकतरफा था, पाँचों पुत्रों की सलामती के लिए उसने कर्ण को अपना जान दांव पर लगाने हेतू वचन लेने गई थी।
4- कुंती को रामधारी जी ने एक अभागी माँ की तरह पेश किया हैं, जिसमे कुंती की विवशता को भी दर्शाया गया हैं।
5- कुंती के अपने फर्ज से विमुख होने की वजह से, उन्हें हमेशा एक कमजोर और अभागी रानी की तरह भी देखा जायेगा।
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