Hindi, asked by Kushal554, 1 year ago

rashtra nirmaan me nari ka yogdan essay with complete base in abot 300 worfs . mujhe abhi yaad krna h islie faltu answer dekar dimaag kharab mat krna jise achhe se ata ho vhi likhna kuchh bhi

Answers

Answered by holkaryash2001
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हमारे देश में नारी को देवी, अबला, श्रद्धा और पूज्या जैसे नामों से सम्बोधित करने की परम्परा अत्यंत पुराने समय से चली आ रही है। नारी के लिए इस प्रकार के सम्बोधन का प्रयोग करके हमने उसे पूजा की वस्तु बना दिया या फिर उसे अबला कहकर संपत्ति बना दिया। उसका एक रूप और भी है जिसका स्मरण हम कभी- करते हैं और वह रूप है शक्ति का। यही वह रूप है जिसको हमारा पुरुषप्रधान समाज अपनी हीन मानसिकता के कारण उजागर नहीं करना चाहता। यही कारण है की हमारे सामने यह प्रश्न बार-बार आता है की आखिर नारी का समाज के या राष्ट्र के निर्माण में क्या योगदान है ? जो नारी हमें जन्म देकर इस लायक बनाती है की हम जीवन में कुछ कर सकें, क्या उसी नारी के ऊपर प्रश्न चिन्ह लगा देना सही है ?


नारी का माँ का रूप समाज निर्माण और राष्ट्र के विकास में सहायक नहीं है क्या। बहन के रूप में पुरुष को सदा अपना स्नेह प्रदान करना क्या समाज निर्माण में सहायक नहीं है ? पत्नी के रूप में घर-गृहस्थी की देखभाल करना और पूरे परिवार को संभालना क्या काम महत्वपूर्ण है ? वर्तमान में तो नारी पुरुषों के समान ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपना कौशल और प्रतिभा दिखा रहीं हैं। आज महिलायें माउंट एवरेस्ट फतह कर रहीं हैं, कल्पना चावला जैसे महिलाओं ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में नाम रौशन किया। जिस देश में इंदिरा गांधी जैसी महिला प्रधानमन्त्री हुई, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जैसी नारी जिस देश में राष्ट्रपति बनीं, क्या उसी देश में नारी के योगदान पर प्रश्न उठाना चाहिए ? भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में ऐसा कोई देश न होगा जहां नारी के मजबूत कदम न पड़े हों। तो फिर ऐसा कौन का योगदान हैं जिसकी अपेक्षा हम नारी से कर रहे हैं ? 


 अगर भारत का ही इतिहास देखें तो पता चलेगा की नारी प्राचीन काल से ही राष्ट्र निर्माण में सहायक रहीं हैं और आज भी सहायक हैं। वैदिक सभ्यता के निर्माण में हम गार्गी, कपिला, अरुंधति और मैत्रेयी जैसी विदुषी नारियों के योगदान को भूल नहीं सकते। पौराणिक काल में राजा दशरथ के युद्ध के समय उनके सारथी का काम करने वाली उनकी पत्नी कैकेयी द्वारा रथचक्र की कील निकल जाने पर अपनी अंगुली से कील कील को ठोककर उनके रथ को विमुख न होने देना क्या राष्ट्र सेवा नहीं थी ?


मध्यकाल में नारी की दशा सही नहीं थी, पुरुषों ने उन्हें केवल भोग-विलास की वस्तु बना रखा था। परन्तु सम्पूर्ण भारत में ऐसा नहीं था। यही वह दौर था जब रजिया सुलतान, चाँदबीबी, जीजाबाई, अहिल्याबाई और रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं का उदय हुआ, जिन्होंने पुरुष प्रधान समाज को चुनौती दी और नारीत्व का परचम फहराया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी ऐनी बेसेंट, सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित, आजाद हिन्द फ़ौज की कैप्टन लक्ष्मी सहगल और बेगम हजरत महल जैसी महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया। सम्पूर्ण विश्व में ऐसा कोई राष्ट्र न होगा जिसके निर्माण में महिलाओं का योगदान न हो। 


आज जब भारत अपने पुनः निर्माण के दौर से गुजर रहा है तो भारतीय नारी निश्चय ही राष्ट्र निर्माण में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रही है। दुःख के साथ इस बात को कहना पड़ता है कि देश का तथाकथित पुरुष समाज आज भी  नारी के प्रति अपना दृष्टिकोण पूरी तरह से नहीं बदल पाया है। अवसर पाकर वह उनकी कोमलता का अनुचित लाभ उठाने की चेष्टा में रहता है। परन्तु आज की युवा पीढ़ी जागरूक है। कुछ एक को छोड़कर आज के पुरुष भी महिलाओं को बढ़ने का अवसर देते हैं और उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना चाहते हैं। यदि नारी की सूझ-बूझ का सही उपयोग किया जाए तो भारत को विकासशील से विकसित राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता। 



Kushal554: thnx
Kushal554: mujhe pta h apne ye net se tepa h fer bhi ye thhik h kyonki mujhe net pe ye wala mila nhi thha
holkaryash2001: yaar likhna hai na dost toh likh le,kyun phir itni zhanzhat kar raha hai
Kushal554: thnq
Kushal554: Bhai
Kushal554: ye brainliest khan se hoga
holkaryash2001: nahi hai brailiest,par madat kar di bhai tumhari yahi kaafi hai
Kushal554: thnx bro
Answered by Anonymous
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good question and answer

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