Hindi, asked by arulchristy7770, 9 months ago

Rashtra pratham essay in hindi

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Answered by shailajavyas
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Answer:

Answer:  राष्ट्र प्रथम    

"जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं

वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं "  

             मैथिलीशरण गुप्त जी की यह पंक्तियां राष्ट्रप्रेम को उद्वेलित करती है तथा मनुष्य मात्र को राष्ट्र हित में सोचने के लिए बाध्य करती है ।     किसी भी व्यक्ति की पहचान सर्वप्रथम उसके राष्ट्र से की जाती है । जिस प्रकार किसी चमन में रहने वाली बुलबुल अपना आशियाना अपने चमन में बनाकर अपना जीवन अपने समुदाय के साथ व्यतीत करती है । उसी प्रकार हम जिस राष्ट्र में जन्म लेते हैं तथा जिस राष्ट्र से हमारा भरण ,पोषण ,संवर्धन तथा क्षरण गतिमान होता हुआ हमें हमारे होने की गौरवान्वित अनुभूतियों का खज़ाना प्राप्त करवाता हैं । वह हमारे लिए सर्वप्रथम होना ही चाहिए ।  

              जिस राष्ट्र के अन्न जल तथा समीर से हमारा निर्वहन होता है | जिस राष्ट्र की मिट्टी में खेलकूद का हम बड़े हुए हैं | जिसकी पावन धरा पर बिछौना बिछाकर हमने एक माता की गोद में सर रखने की निर्भीक एवं ममतामयी छांव को अनुभूत किया है । ऐसे राष्ट्र को हमें सदैव प्रथम स्थान पर रखना चाहिए ।  

" खा अन्न और जल तेरा मां  

ये अंग सकल बड़े हुए तेरी ही वायु से माता ये सांस है अब तक अडे हुए ।  

ऋण तेरा है मुझ पर भारी उसको हम आज चुका देंगे जीवन की भेंट चढ़ा देंगे ।|"  

          हमें हमारे देश या राष्ट्र से प्रेम होना चाहिए। ये राष्ट्र हमारा है हम इस राष्ट्र के है । राष्ट्र केवल कुछ जनसंख्या की भरमार मात्र नहीं है अपितु वह एक संविधान के तहत सुनिश्चित नियमावली के अंतर्गत निर्धारित कर्तव्य और अधिकारों का एक ऐसा तंत्र है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी मूल स्वतंत्रता के अनुरूप एक दायरे में बंधकर जीवन व्यतीत कर सकता है । हमें अधिकारों की प्राप्ति हुई है उसकी रक्षा हेतु राष्ट्र की रक्षा करना भी हमारा परम कर्तव्य है।  

        प्रत्येक नागरिक का अस्तित्व देश के अस्तित्व से है । हमारी आस्थाएं, मान्यताएं, प्रथाएं, और रीति रिवाज सभी पहलू देश के बाद या राष्ट्रीयता के अनंतर आते है । राष्ट्र की अस्मिता तभी कायम रहेगी जब सेना के साथ -साथ देशवासी भी सजग एवम् जागरूक तथा एकत्र रहेंगे ।  

            राष्ट्र के अंतर्गत न केवल हमारी संस्कृति का संरक्षण होता है अपितु हमारे जीवन मूल्य तथा दैनिक आवश्यकताओं का अनुशासन पूर्वक निर्वहन भी होता है । हमारा जीवन शांति पूर्वक अबाध गति से विकास और हमारी निजी परंपराओं प्रथाओं तथा धर्मों की विविधता को संजोए हुए आगे बढ़ता रहे यही हमारे राष्ट्र की सरकार का दायित्व है । हमारा जीवन सुचारू रूप से समग्र पहलुओं को लेकर शांति से विकसित हो यही सरकार की सफलता एवं मानसिकता का पैमाना भी हैं |जिस पर तोल कर देश की जनता लोकतंत्र या तंत्रविशेष के माध्यम से सरकार का चयन करती हैं तथा उन्हें सत्तासीन करती हैं । सरकार के साथ-साथ हम प्रजाजनों का भी दायित्व है कि हम अपने राष्ट्र की उन्नति ,प्रगति ,शांति तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने मानक मूल्यों के आधार पर उसका सतत संरक्षण ,संवर्धन एवं समग्र विकास में सहायक बने ।  

                विडंबना यह है आज व्यक्ति आत्म केंद्रित हो गया है और अपने राष्ट्रहित के विषय में सोचने से पहले स्वयं के लाभ के बारे में सोचता है । जिसका हमारे देश के माहौल पर बुरा प्रभाव पड़ता है | हमें सब कुछ एक ओर रखकर अपने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए सोचना होगा तभी हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे राष्ट्र को उन्नतिशील बना पाएंगे |

             राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने राष्ट्रपति बनने के बाद अपने प्रथम संभाषण में यही शब्द कहे थे कि "अमेरिका वासियों तुम ये मत सोचो कि अमेरिका तुम्हारे लिए क्या कर रहा है ,तुम यह सोचो कि तुम अमेरिका के लिए क्या कर रहे हो ।"इतनी सुंदर राष्ट्रप्रेम की भावना को हमें भी आगे बढाना होगा और सर्वप्रथम राष्ट्र को ऊंचा स्थान देना होगा।  

                         राष्ट्र हमारी धरोहर को सुरक्षित रखता है तथा नए-नए परिष्कारो के माध्यम से प्रगति के नए द्वार खोलता है । एक ओर राष्ट्र जहां हमें तथा हमारी संस्कृति को बनाए रखता हैं वही दूसरी ओर हमारे जीवन मूल्यों को सहेजकर रखने में हमारी मदद करता है ।

     इसी परिप्रेक्ष्य में हम अपने भारत देश या राष्ट्र को देखे तो हमें पता चलता है कि भारत विविधताओं का देश है | इस बगीचे में भाँति -भॉँति के फूल खिले हुए हैं | यह भारतवर्ष की खूबसूरती है कि यहां विभिन्न धर्मों के अनुयायी सौहार्द्रपूर्वक व भाईचारे के साथ रहते हैं | यदि विचार करने लगे तो भारतवर्ष में रहन-सहन ,पहनावे , रीति-रिवाज और भौगोलिक परिस्थितियाँ सभी में विविधता और विचित्रता के दर्शन होंगे |

       यहां पाई जाने वाली विभिन्नताओं में तालमेल की प्रवृत्ति में लोग विश्वास रखते हैं | जनसमुदाय एक दूसरे के धर्मों का आदर करते हैं | यहां एकता यदि ढूंढी जाए तो सर्वत्र व्याप्त दिखाई देंगी | हिंदू-मुस्लिम परस्पर सौहार्द्र भावना से परिपूर्ण होकर प्रेम से रहते हैं   | इसके कई बाधक तत्व भी है जैसे दुराचारी धार्मिक नेता जातिगत असमानता को अपने स्वार्थ के लिए बढ़ाते है जिससे समाज में वैमनस्य फैले | स्वार्थी राजनीतिक नेता जो अपना षड्यंत्र रच कर अपनी वोट की राजनीति करते हैं | इसप्रकार देश की एकता को हानि पहुंचाने की पुरजोर कोशिश की जाती  हैं |

                  हमें सदैव यह स्मरण रखना चाहिए कि विभिन्नताओं को सामंजस्य से चलाने के लिए एकजुट रहना अनिवार्य है | निर्विरोध रहकर ही इस विविधता के सौन्दर्य को कायम रखा जा सकता है | यदि सब अपनी ढपली अपना राग बजाने लगे तो राष्ट्र में घोर अराजकता व्याप्त हो जाएँगी | फलत: विकास अवरुद्ध होगा जिसके कारण हमारी अर्थव्यवस्था बिगड़ने लगेगी | परिणामस्वरूप राष्ट्र कमजोर होने लगेगा |  कमजोर राष्ट्र को अंतर्राष्ट्रीय धरातल पर विकसित राष्ट्रों का साथ कतई नहीं मिलेगा | इसका फायदा शत्रु राष्ट्र उठा सकते है अस्तु हमें राष्ट्र को सर्वप्रथम स्थान देना चाहिए |

Answered by dcharan1150
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राष्ट्र प्रथम |

Explanation:

कोई भी देश या राष्ट्र उसके अंदर बसने वाले नागरिकों के लिए सब कुछ हैं, क्योंकि उसी के ऊपर ही हम लोग जन्म लेते हैं और उसी के पानी, हवा, अनाज को खा कर ही इतने बड़े होते हैं | एक तरह से हमारा राष्ट्र हमारी माँ समान हैं और इसके प्रति हमारा कई सारे कर्तव्य भी हैं |

इसको शत्रुओं से बचाना और इसके समृद्धि के लिए काम करना उन कर्तव्यों में से प्रमुख कर्तव्य हैं | राष्ट्र प्रथम ही हर एक नागरिक का मूल मंत्र होना चाहिए | इसी जमीन के लिए जीना और इसी के लिए ही मिटना हमारा परम उद्देश्य हैं |

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