rashtriya Ekta ka rashtra par kya prabhav padta hai
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राष्ट्रीय एकता का राष्ट्र पर क्या प्रभाव पड़ता है?
► राष्ट्रीय एकता का किसी राष्ट्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। राष्ट्रीय एकता की भावना से कोई भी राष्ट्र मजबूत होता है।
राष्ट्रीय एकता एक भावना है, यह एक एहसास है, यह एक प्रेरणा है। राष्ट्रीय एकता किसी राष्ट्र के लोगों द्वारा किया जाने वाले एक ऐसा आचरण है, जो किसी राष्ट्र के लोगों एक समान धरातल पर लाकर खड़ा कर देता है, जहाँ वे एक सूत्र में जुड़कर एक हो जाते हैं। यह एक योजना शक्ति है, जो एक राष्ट्र में रहने वाले अलग-अलग धर्म, जाति, संप्रदाय, भाषा के लोगों को एक सूत्र में पिरो कर रखती हैष
जिस देश के लोगों में जितनी अधिक राष्ट्रीय एकता होगी, वह देश उतना ही अधिक मजबूत होगा और किसी भी बाहरी आक्रमण का सामना करने के लिए वह सदैव तत्पर रहेगा। मजबूत राष्ट्रीय एकता वाला राष्ट्र अपने राष्ट्र की सुरक्षा अधिक दृढ़ता से कर पाता है। किसी भी देश में राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है कि उस देश का नेतृत्व सुदृढ़ हो। एक सफल एवं सुदृढ़ नेतृत्व ही देश में राष्ट्रीय एकता की भावना विकसित कर सकता है और पूरे राष्ट्र के लोगों को एकता के सूत्र में पिरो कर रख सकता है।
आज अनेक देशों में राष्ट्रीय एकता की भावना ही कमी है, इसी कारण उन देशों में विघटनकारी ताकतें जन्म लेने लगती हैं, जो उस देश की अखंडता एवं संप्रभुता के लिए खतरा पैदा करती हैं। इसलिए राष्ट्रीय एकता किसी देश की अखंडता और उसकी संप्रभुता के लिए सबसे आवश्यक आचरण है। किसी भी अखंड एवं संप्रभु राष्ट्र के लिए उसके लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना अवश्यांभी होनी चाहिए।
राष्ट्रीय एकता लोगों में एक आत्मीयता और प्रेम भी प्रकट करती है, जिससे राष्ट्र के लोगों में परस्पर सहयोग की भावना विकसित होती है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति से संबंध क्यों ना रखते हों, उनकी पृष्ठभूमि अलग-अलग क्यों ना हो, लेकिन राष्ट्रीय एकता के कारण वे एक कॉमन पहचान से जुड़ जाते हैं, इसलिए राष्ट्रीय एकता एक राष्ट्र के वजूद की पहचान का प्रतीक है जो उस राष्ट्र को एक मजबूती प्रदान करती है।
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जब किसी समाज में सारे व्यक्ति किसी निर्दिष्ट भौगोलिक सीमा के अन्दर अपने पारस्परिक भेद-भावों को भुलाकर सामूहीकरण की भावना से प्रेरित होते हुए एकता के सूत्र बन्ध जाते हैं तो उसे राष्ट्र के नाम से पुकारा जाता है। राष्ट्रवादीयों का मत है – “ व्यक्ति राष्ट्र के लिए है राष्ट्र व्यक्ति के लिए नहीं “ इस दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति अपने राष्ट्र का अभिन्न अंग होता है। राष्ट्र से अलग होकर उसका कोई अस्तित्व नहीं होता है। अत: प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्र की दृढ़ता तथा अखंडता को बनाये रखने में पूर्ण सहयोग प्रदान करे एवं राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिए राष्ट्रीयता की भावना परम आवश्यक है। वस्तुस्थिति यह है कि राष्ट्रीयता एक ऐसा भाव अथवा शक्ति है जो व्यक्तियों को अपने व्यक्तिगत हितो को त्याग कर राष्ट्र कल्याण के लिए प्रेरित करती है। इस भावना की विकसित हो जाने से राष्ट्र की सभी छोटी तथा बड़ी सामाजिक इकाइयां अपनी संकुचती सीमा के उपर उठकर अपने आपको समस्त राष्ट्र का अंग समझने लगती है। स्मरण रहे कि राष्ट्रीयता तथा देशप्रेम का प्राय: एक ही अर्थ लगा लिया जाता है। यह उचित नहीं है। देश प्रेम की भावना तो पर्चिन काल से ही पाई जाती है परन्तु रस्थ्रियता की भावना का जन्म केवल 18 वीं शताबदी में फ़्रांस की महान क्रांति के पश्चात ही हुआ है। देश-प्रेम का अर्थ उस स्थान से प्रेम रखना है जहाँ व्यक्ति जन्म लेता है। इसके विपरीत राष्ट्रीयता एक उग्र रूप का सामाजिक संगठन है जो एकता के सूत्र में बन्धकर सरकार की नीति को प्रसारित करता है। यही नहीं, राष्ट्रीयता का अर्थ केवल राज्य के प्रति अपार भक्ति ही नहीं अपितु इसका अभिप्राय राज्य तथा उसके धर्म, भाषा, इतिहास तथा संस्कृति में भी पूर्ण श्रद्दधा रखना है। संक्षेप में राष्ट्रीयता का सार – राष्ट्र के प्रति आपार भक्ति, आज्ञा पालान तथा कर्तव्यपरायणता एवं सेवा है। ब्रबेकर ने राष्ट्रीयता की व्याख्या करते हुए लिखा है – “ राष्ट्रीयता शब्द की प्रसिद्धि पुनर्जागरण तथा विशेष रूप से फ़्रांस की क्रांति के पश्चात हुई है। यह साधारण रूप से देश-प्रेम की अपेक्षा देश-भक्ति से अधिक क्षेत्र की ओर संकेत करती है। राष्ट्रीयता में स्थान के सम्बन्ध के अतिरिक्त प्रजाति, भाषा तथा संस्कृति एवं परमपराओं के भी सम्बन्ध आ जाते हैं।”