Hindi, asked by aditya13564, 9 months ago

Rashtriya Ekta Mein badhak tatva par nibandh 200 words​

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Answered by ABHIMANYU2007
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आर्थिक और सामाजिक असमानता राष्ट्रीय एकता में बहुत बड़ी बाधा है। उस असमानता का मूल है अहं और स्वार्थ। इसलिए राष्ट्र की भावात्मक एकता के लिए अहं-विसर्जन और स्वार्थ-विसर्जन को मैं बहुत महत्व देता हूं। जातीय असमानता भी राष्ट्रीय एकता का बहुत बड़ा विघ्न है। उसका भी मूल कारण अहं ही है। दूसरों से अपने को बड़ा मानने में अहं पुष्ट होता है और आदमी अपने-आप में संतोष का अनुभव करता है। अहं का विसर्जन किए बिना जातीय भेद का अंत नहीं हो सकता।

मनुष्य जन्मना मनुष्य का शत्रु नहीं है। एक पेड़ की दो शाखाएं परस्पर विरोधी कैसे हो सकती हैं? फिर भी यह कहा जाता है कि धर्म-संप्रदाय मनुष्यों में मैत्री स्थापित करने के लिए प्रचलित हुए हैं। उनमें जन्मना शत्रुता नहीं है, फिर मैत्री स्थापित करने की क्या आवश्यकता हुई? मैं फिर इस विश्वास को दोहराना चाहता हूं कि मनुष्य-मनुष्य में स्वभावत: शत्रुता नहीं है। वह निहित स्वार्थ वाले लोगों द्वारा उत्पन्न की जाती है। उसे मिटाने का काम धर्म-संप्रदाय ने प्रारंभ किया, किंतु आगे चलकर वे स्वयं निहित स्वार्थ वाले लोगों से घिर गए और मनुष्य को मनुष्य का शत्रु मानने के सिद्धांत की पुष्टि में लग गए। इस चिंतन के आधार पर मुझे लगता है कि सांप्रदायिक समस्या का मूल भी अहं और स्वार्थ को छोड़कर अन्यत्र नहीं खोजा जा सकता। इसलिए सांप्रदायिक वैमनस्य की समस्या को सुलझाने के लिए भी अहं और स्वार्थ का विसर्जन बहुत आवश्यक है।

भाषा, जो दूसरों तक अपने विचारों को पहुंचाने का माध्यम है, को भी राष्ट्रीय एकता के सामने समस्या बनाकर खड़ा कर दिया जाता है। अपनी भाषा के प्रति आकषर्ण होना अस्वाभाविक नहीं है। पर हमें इस तथ्य को नहीं भुला देना चाहिए कि मातृभाषा के प्रति जितना हमारा आकषर्ण होता है, उतना ही दूसरों को अपनी मातृभाषा के प्रति होता है। इसलिए भाषाई अभिनिवेश में फंसना कैसे तर्पसंगत हो सकता है। राष्ट्रीय एकता के लिए इन विषयों पर गंभीर चिंतन करना आवश्यक है।

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