rashtriya shiksha niti chatro ke loye shayak nhi hai.......i want hindi debate
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नौ सदस्यीय कस्तूरीरंगन समिति द्वारा तैयार नयी शिक्षा नीति के प्रारूप पर चर्चा जारी है. इस दस्तावेज पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नागरिकों और संगठनों से सुझाव आमंत्रित किये हैं. केंद्र सरकार के गठन के तुरंत बाद प्रारूप के सार्वजनिक होते ही बहस इसके भाषा संबंधी हिस्से पर केंद्रित हो गयी. विवाद के माहौल में प्रस्तावों पर समुचित रूप से चिंतन नहीं हो सका है. आगामी दो दशकों से अधिक समय तक देश के शैक्षणिक भविष्य को निर्धारित करनेवाले इस प्रारूप पर देशव्यापी बहस आवश्यक है. नीतिगत प्रस्तावों के प्रमुख बिंदुओं के विवरण एवं विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-दिनों... शिक्षा नीति : मील के पत्थर 1948- डॉ राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन 1952- लक्ष्मणस्वामी मुदलियार की अगुआई में माध्यमिक शिक्षा आयोग बना 1964- दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में शिक्षा आयोग 1968- कोठारी आयोग के सुझावों पर शिक्षा नीति का प्रस्ताव 1986- नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू 1990- आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति बनी 1993- प्रो यशपाल के नेतृत्व में समीक्षा समिति का गठन 2017- नयी शिक्षा नीति का प्रारूप बनाने के लिए कस्तूरीरंगन समिति का गठन मसौदे के मुख्य िबंदु राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 के प्रारूप में शिक्षण व्यवस्था को मुख्य रूप से चार भागों में बंटा गया है. पहले भाग में विद्यालयीय शिक्षा, दूसरे में उच्च शिक्षा और तीसरे में प्रौद्योगिकी, व्यावसायिक व वयस्क शिक्षा को रखा गया है. प्रारूप के चौथे भाग में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के जरिये शिक्षा में बदलाव लाने की बात कही गयी है. विद्यालयीय शिक्षा इसके तहत निम्न बातों को शामिल किया गया है. बचपन की देखभाल और शिक्षा : वर्ष 2025 तक तीन से छह वर्ष की उम्र के सभी बच्चों को नि:शुल्क, सुरक्षित, उच्च गुणवत्ता पूर्ण और विकास के लिए उपयुक्त देखरेख और शिक्षा मुहैया कराने का लक्ष्य है. यह सब स्कूल और आंगनबाड़ी जैसे संस्थानों के माध्यम से किया जायेगा. इन संस्थानों पर बच्चों के समग्र कल्याण यानी पोषण, स्वास्थ्य व शिक्षा की जिम्मेदारी होगी. ये संस्थाएं तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चों के विकास के लिए उनके घरों में समान सहायता प्रदान करेंगी. मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान : वर्ष 2025 तक ग्रेड पांच और ऊपर के प्रत्येक विद्यार्थी अपनी आयु के अनुसार मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त कर लें, इस प्रकार की विस्तृत योजना का खाका तैयार किया गया है. ऐसा करने का उद्देश्य बच्चों को पढ़ने, लिखने और प्राथमिक गणित को हल करने की योग्यता प्रदान करना है. अनेक सरकारी और गैर सरकारी सर्वेक्षणों से यह बात सामने आयी है कि वर्तमान में प्राथमिक स्कूल के अधिकांश विद्यार्थी अपनी कक्षा की पुस्तकों को पढ़ने, लिखने और गणित के प्रश्न हल करने में सक्षम नहीं हैं. सभी तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करना : वर्ष 2030 तक तीन से 18 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य गुणवत्ता युक्त स्कूली शिक्षा मुहैया कराना और स्कूलों तक बच्चों की पहुंच सुनिश्चित करना, नयी शिक्षा नीति का उद्देश्य है. इसके साथ ही सरकार का इरादा यह भी सुनिश्चित करना है कि बच्चे स्कूल आना जारी रखें और अपनी पढ़ाई अधूरी न छोड़ें. नये पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति : वर्ष 2022 तक स्कूली पाठ्यक्रम और शिक्षण के तरीके में बदलाव किया जायेगा, ताकि बच्चों के रटने की आदत में कमी आये और उनका समग्र विकास हो. साथ ही उनके भीतर गहन सोच, रचनात्मकता, वैज्ञानिक मनोवृत्ति, संचार, सहयोग, बहुभाषावाद, समस्या समाधान, नैतिकता, सामाजिक दायित्व और डिजिटल साक्षरता जैसी 21वीं सदी के कौशल का भी विकास हो. इसके लिए शिक्षण पद्धति को 5+3+3+4 के स्वरूप में डिजाइन किया जायेगा. क्लासरूम को आकर्षक और मजेदार बनाया जायेगा, ताकि बच्चे पढ़ने के लिए उत्साहित हों. पाठ्यक्रम सामग्री कम की जायेगी. विद्यार्थियों, विशेष रूप से माध्यमिक स्कूल के छात्रों के लिए विषय चयन के लचीले और ज्यादा विकल्प उपलब्ध होंगे. बच्चे अच्छी तरह समझ सकें, इसके लिए ग्रेड पांच तक उन्हें मातृभाषा में पढ़ाने की सुविधा उपलब्ध कराने की बात भी कही गयी है. शिक्षकों की नियुक्ति : नयी नीति के तहत यह भी सुनिश्चित करना होगा कि स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों में पढ़ाने वाले शिक्षक जिज्ञासु, प्रोत्साहित करनेवाले, उच्च शिक्षित, प्रशिक्षित और गुणों से संपन्न हों. वर्ष 2030 तक शिक्षण के लिए न्यूनतम योग्यता चार वर्षीय लिबरल इंटेग्रेटेड बीएड डिग्री होगी. शिक्षण क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उत्कृष्ट छात्रों को मेरिट-बेस्ड स्कॉलरशिप प्रदान की जायेगी. इसके तहत हाइस्कूल में बेहतर प्रदर्शन करनेवाले विद्यार्थियों के ल