raskhan ke dohe Arth sahit
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दोहे का अर्थ:
इसमें रसखान जी गोपियों से कहते हैं कि – अरी अनुपम सुन्दरी तुम नयी नवेली गौना द्विरागमन कराकर ब्रज में आई हो, क्या तुम्हें मोहन का चाल-ढाल मालूम नहीं है। अगर तुम घर के बाहर पैर रखी तो समझ लो-वह छलिया तुम्हारी ताक में लगा हुआ है। पता नहीं कब वह तुम्हें अपने प्रेम जाल में फांस लेगा।
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