रत्न प्रसविनी हैं वसुधा, अब समझ सका है
इसमें सच्ची समता के दाने बोने हैं।
इसमें जन की क्षमता के दाने बोने हैं।
इसमें मानव ममता के दाने बोने हैं।
जिसमें उगल सके फिर धूल सुनहली फसल
मानवता की -जीवन श्रम से हँसें दिशाएँ।
हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे।
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Explanation:
sacchi Samta aur Jain ki kshamta ke Dane se Kavi ka kya aashay hai
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