रतनपुरस्य जनपदान्तर्गत शताधिकवर्षपूर्व 'लगरा' इति ग्रामात् स्वपल्या सह
जीवकोपार्जनार्थ 'परसू नाम्नः कैवर्त्यः निर्गतः। तो अरपानद्याः तटे अतिष्ठताम्। अरपाया. तटे
एक: लघुग्रामः आसीत्। परसू अरपानद्यां प्रतिदिनं मत्स्याखेट करोति स्म। कालान्तरेण तस्य
भार्या बैसाखा एकां स्वस्थां बालाम् अजनयत्। सा बालिका लावण्यवती आसीत्। लावण्येन
तस्याः 'बिलासा' इति नामकरणमभवत् ।
बिलासा शैशवकाले बाला बालैः सह क्रीडति स्म। तस्यै बालकानां क्रीडनकंक्रीडनं च
रोचते स्म। बिलासा अदम्य साहसिका आसीत्। एकदा सुप्तं बाल नीत्वा दृक्कः पलायनं कुर्वन्
आसीत् । तदा बिलासा वृक्कं दण्डेन ताडयित्वा बालक मुक्तं कृत्वा मातरं समर्पयत्। बालकः सह
बिलासा मल्ल-कौशलं शिक्षते स्म। तं साहसं दृष्टवा जनैः तस्याः दलायग्रामरक्षणस्य दायित्वं
प्रदत्तम। translate in to Hindi
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Explanation:
काइंगा वास्तुकला शैली (ओडिया: କଳିଙ୍ଗ ସ୍ଥାପତ୍ୟକଳା) एक ऐसी शैली है जो प्राचीन कालिंग क्षेत्र या ओडिशा, पूर्वी बंगाल और उत्तरी आंध्र प्रदेश के पूर्वी भारतीय राज्य में विकसित हुई है। शैली में तीन अलग-अलग प्रकार के मंदिर होते हैं: रेखा देला, पिधा देवला और खखारा देवला। पूर्व दो विष्णु, सूर्य और शिव मंदिरों से जुड़े हुए हैं जबकि तीसरा मुख्य रूप से चामुंडा और दुर्गा मंदिरों के साथ है। रेखा देला और खखारा देवला में पवित्र अभयारण्य है, जबकि पिधा देवला बाहरी नृत्य और हॉल पेश करता है।
hi काइंगा वास्तुकला शैली (ओडिया: କଳିଙ୍ଗ ସ୍ଥାପତ୍ୟକଳା) एक ऐसी शैली है जो प्राचीन कालिंग क्षेत्र या ओडिशा, पूर्वी बंगाल और उत्तरी आंध्र प्रदेश के पूर्वी भारतीय राज्य में विकसित हुई है। शैली में तीन अलग-अलग प्रकार के मंदिर होते हैं: रेखा देला, पिधा देवला और खखारा देवला। पूर्व दो विष्णु, सूर्य और शिव मंदिरों से जुड़े हुए हैं जबकि तीसरा मुख्य रूप से चामुंडा और दुर्गा मंदिरों के साथ है। रेखा देला और खखारा देवला में पवित्र अभयारण्य है, जबकि पिधा देवला बाहरी नृत्य और हॉल पेश करता है।
sa देव भोः पितरस्माकं परस्मिन् व्योम्नि तिष्ठसि। त्वदीयं कीर्त्यतां नाम तस्मिन् प्रीतिः सदास्तु नः॥ स्थाप्यतां तव सम्राज्यमत्रैव पृथिवीतले। भवेह सिद्धसंकल्पो यथासि स्वस्य धामनि॥ अन्नं दैनन्दिनं दत्त्वा पालयास्मान् दिने दिने। क्षमस्व चापराधान् नो ज्ञात्वाज्ञात्वा तु वा कृतान्॥ यथास्माभिर्हि चान्येषाम् अपराधा हि मर्जिताः। हे प्रभो न तथैवास्मान् गमयाधर्मवर्त्मनि॥ लोभात्पापप्रवृत्तिश्च दौरात्म्याच्चैव मोचय। युक्तमेतत् यतस्तेऽस्ति राज्यं प्रभाववैभवं। अत्र परत्र सर्वत्र अद्य श्वश्च युगे युगे॥
hi हे हमारे स्वरगिक पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य अाए, तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग मे॑ पूरी होती है॑, वैसे पर्िथ्वी पर भी हो, आज हमे॑ उतना भोजन दे, जो हमारे लिए आवश्क है, हमारे अपराध शमा कर, जैसे हम दूसरो के अपराध शमा करते है, हमारे विश्वास को मत परख पर॑तु हमे शैतान से बचा.
sa किम् अहम् अनुवादं लिखामि? किम् अहम् अनुवादम् लेखिष्यामि
hi 1. क्या मैं अनुवाद लिखती हूँ ?
sa पिता तुल्य बडे. भाइया कि जन्म दिवस कि हार्दिक बधाई एव शुभकामाए
hi पिता तुल्य बडे. भाइया कि जन्म दिवस कि हार्दिक बधाई एव शुभकामाए
sa क्योकि तुम इसके योग्य हो , इसीलिये आपके पास सारी प्राकृतिक सुंदरता है।
hi क्योकि तुम इसके योग्य हो , इसीलिये आपके पास सारी प्राकृतिक सुंदरता है।
sa प्रात: सूर्य: उदेति। सूयौदयेन सह दिवसारम्भः भवति। सूयौदयात् प्राक् उषः कालो भवति यो हि अतीव रमणीयःभवति। सर्वे ग्रहा: सूर्य परिक्रमान्ति। पृथिवी अपि सूर्य परिक्रमति। पृथिव्या: सूर्यस्य परिक्रमाकालः संवत्सरकालः। अतः सूर्य एव कालस्य कारणम्। अतएव जनाः प्रातः श्रद्धया सूयं नमान्ति। सूर्यस्यैव नामान्तराणि-भास्कर-प्रभाकर-दिवाकर-भानु-आदित्य- अर्क-रविप्रभृतीनि अनेकानि सन्ति।