रथ चक्र पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए
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चक्र, (संस्कृत: चक्रम् ) ; पालि: हक्क चक्का) एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'पहिया' या 'घूमना' है।[1]
चक्र
Ljubljana Marshes Wheel with axle (oldest wooden wheel yet discovered).jpg
एक्सल के साथ यह ज़ुब्लज़ाना मार्श्स व्हील सबसे पुराना लकड़ी का पहिया है जिसे अभी तक तांबे की उम्र (सी। 3,130 ईसा पूर्व) के लिए डेटिंग की खोज की गई है
भारतीय दर्शन और योग में चक्र प्राण या आत्मिक ऊर्जा के केन्द्र होते हैं। ये नाड़ियों के संगम स्थान भी होते हैं। यूँ तो कई चक्र हैं पर ५-७ चक्रों को मुख्य माना गया है। यौगिक ग्रन्थों में इनहें शरीर के कमल भी कहा गया है। [2] प्रमुख चक्रों के नाम हैं-
मूलाधार चक्र - मेरुदंड के मूल में, सबसे नीचे। उससे ऊपर आने पर क्रम से
स्वाधिष्ठान चक्र
मणिपुर चक्र
अनाहत चक्र
विशुद्धि चक्र
आज्ञा चक्र - मेरुदण्ड की समाप्ति पर भ्रूमध्य के पीछे।
सहस्रार चक्र - कई विद्वान इसे इस लिए चक्र नहीं मानते कि इसमें ईड़ा और पिंगला का प्रभाव नहीं पड़ता।
आयुर्वेद के अनुसार, चक्र की अवधारणा का संबंध पहिए-से चक्कर से हैं, माना जाता है इसका अस्तित्व आकाशीय सतह में मनुष्य का दोगुना होता है।[3] कहते हैं कि चक्र शक्ति केंद्र या ऊर्जा की कुंडली है जो कायिक शरीर के एक बिंदु से निरंतर वृद्धि को प्राप्त होनेवाले फिरकी के आकार की संरचना (पंखे प्रेम हृदय का आकार बनाते हैं) सूक्ष्म देह की परतों में प्रवेश करती है। सूक्ष्म तत्व का घूमता हुआ भंवर ऊर्जा को ग्रहण करने या इसके प्रसार का केंद्र बिंदु है।[4] ऐसा माना जाता है कि सूक्ष्म देह के अंतर्गत सात प्रमुख चक्र या ऊर्जा केंद्र (जिसे प्रकाश चक्र भी माना गया) स्थित होते हैं।
विशिष्ट तौर पर चक्रों का चित्रण किन्हीं दो तरीके से किया जाता है:
फूल की तरह
चक्र की तरह
पहले एक चक्र की परिधि के चारों ओर एक विशेष संख्या में पंखुडि़यों को दिखाया जाता है। बाद में एक निश्चित संख्या की तिली वृत को कई खंडों में बांटती है जिससे चक्र, पहिया या चक्के के समान बन जाता है। हरेक चक्र में एक विशेष संख्या के खंड या पंखुडि़यां होती हैं।
चक्रों के बारे में अधिकतम मूल जानकारियां उपनिषदों से मिलती है, इनका समय बताया जाना कठिन है क्योंकि माना जाता है कि लगभग हजारों साल पहले पहली बार 1200-900 BCE में इन्हें लिखे जाने से पूर्व वे मौखिक रूप से अस्तित्व में थे।
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