रवि जग मे शोमा सरसाता
सोम सुप्या तरसाता
सब है जग कर्म मे कोई
निविक्रम दृष्टि न आता
है उददेश्य नितांत तुच्छ
तृण के भी
लघु जीवन का
उसी पूर्ति मे वह करता है।अतं कर्ममय तन को।
पंंश्नन:
१)उपर्युक्त पाश का उचित शीषर्क लिखे।
२) तृण का जीवन कैसा है।
३)उपर्युक्त पधांश का सांरश लिखे।
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1. Ravi
2. laghu
3. don't know
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