"रवींद्रनाथ टैगोर पुस्तकों के प्रति लगाव ही उनके के व्यक्तित्व विकास का साधन बना।" इस कथन से आप कहाँ तक सहमत है। l want a long answer
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भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान डालने वाले युगदृष्टा रवींद्रनाथ टैगोर एक ही साथ महान साहित्यकार, दार्शनिक, संगीतज्ञ, चित्रकार, शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रवादी के साथ मानवतावादी भी थे जिन्होंने दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखा। प्रकृति के प्रति अत्यधिक लगाव रखने वाले रवींद्रनाथ संभवतः ऐसे अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने दो देशों भारत और बांग्लादेश के लिए राष्ट्रीय गान लिखा। बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रवींद्रनाथ ने देश और विदेशी साहित्य दर्शन संस्कृति आदि को अपने अंदर समाहित कर लिया था और वह मानवता को विशेष महत्व देते थे। इसकी झलक उनकी रचनाओं में भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती है।
साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अपूर्व योगदान दिया और उनकी रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य के नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बांग्ला भाषा विभाग में प्राध्यापक डॉ. प्रकाश कुमार मैती के अनुसार रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाएं बांग्ला साहित्य में अनोखी हैं। उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। इन रचनाओं में चोखेर बाली घरे बाइरे गोरा आदि शामिल हैं। उनके उपन्यासों में मध्यम वर्गीय समाज विशेष रूप से उभर कर सामने आया है।