Hindi, asked by pcfawaaz786, 2 months ago

रवींद्रनाथ टैगोर शिक्षा प्राप्त करने कहाँ गए तथा वहाँ उनकी मुलाकात किससे हुई?​

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Answered by BaroodJatti12
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रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म बंगाल के एक अत्यंत ही सम्पन्न एवं सुसंस्कृत परिवार में 6 मई, 1861 को हुआ था। धर्मपरायणता, साहित्य में अभिरूचि तथा कलाप्रियता उन्हें विरासत में मिली। वे महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर के कनिष्ठ पुत्र थे। महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान एवं उत्साही समाज सुधारक थे। इन्होंने ही सर्वप्रथम 1863 ई0 में बोलपुर के पास अपनी साधना के लिए एक आश्रम की स्थापना की। कालान्तर मे यही स्थल रवीन्द्रनाथ टैगोर की कर्मस्थली बनी। यहीं पर गुरूदेव ने शांतिनिकेतन, विश्वभारती, श्रीनिकेतन जैसी विश्व प्रसिद्ध संस्थाओं की स्थापना की।

समृद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण रवीन्द्रनाथ का बचपन बड़े आराम से बीता। पर विद्यालय का उनका अनुभव एक दुःस्वप्न के समान रहा जिसके कारण भविष्य में उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए। कुछ माह तक वे कलकत्ता में ओरिएण्टल सेमेनरी में पढ़े पर उन्हें यहाँ का वातावरण बिल्कुल पसंद नहीं आया। इसके उपरांत उनका प्रवेश नार्मल स्कूल में कराया गया। यहाँ का उनका अनुभव और कटु रहा। विद्यालयी जीवन के इन कटु अनुभवों को याद करते हुए उन्होंने बाद में लिखा जब मैं स्कूल भेजा गया तो, मैने महसूस किया कि मेरी अपनी दुनिया मेरे सामने से हटा दी गई है। उसकी जगह लकड़ी के बेंच तथा सीधी दीवारें मुझे अपनी अंधी आखों से घूर रही है। इसीलिए जीवन पर्यन्त गुरूदेव विद्यालय को बच्चों की प्रकृति, रूचि एवं आवश्यकता के अनुरूप बनाने के प्रयास में लगे रहे।

इस प्रकार रवीन्द्रनाथ को औपचारिक विद्यालयी शिक्षा नाममात्र की मिली। पर घर में ही उन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, संगीत, चित्रकला आदि की श्रेष्ठ शिक्षा निजी अध्यापकों से प्राप्त की।

उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से वे 1878 में इंग्लैंड गये। वहाँ भी वे कुछ ही दिन तक बाइटन स्कूल के विद्यार्थी के रूप में रह पाये। अंततः वे भारत लौट आये। पुनः 1881 ई0 मे कानून की पढ़ाई के विचार से वे विलायत गये। पर वहाँ पहुंचने के उपरांत वकालत की पढाई का विचार उन्होंने त्याग दिया, और वे स्वदेश वापस आ गये। इस प्रकार उन्होंने औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नही की, पर पूर्व और पश्चिम की संस्कृतियों का उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का अवसर मिला। दोनों ही संस्कृतियों का सर्वश्रेष्ठ तत्व गुरूदेव के व्यक्त्वि का हिस्सा बन गया। 1901 में बोलपुर के समीप रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्मचर्य आश्रम के नाम से एक विद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में शान्तिनिकेतन के नाम से पुकारा गया। तत्पश्चात उन्होंने अपने को पूर्णतः शिक्षा साहित्य एवं समाज की सेवा में अर्पित कर दिया।

गुरूदेव को सक्रिय राजनीति में रूचि नहीं थी, पर जब अंग्रेजों ने अन्याय पूर्वक बंगाल का विभाजन किया तो गुरूदेव ने इसके विरूद्ध चलने वाले स्वदेशी आन्दोलन का नेतृत्व किया। वे कलकत्ता की गलियों में एकता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व का गीत गाते हुए निकल पड़े। बंगाल का विभाजन रद्द हुआ।

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