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आजकल समाचार
कल समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार
कछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी हा
र पर हैं, उनमें उतने ही अधिक दोष दिखाई देते हैं। गुण कम या बिलकुल
अनिश्चय ही चिंता का विषय है। यह सही है कि इन दिनों कछ ऐसा माहौल बना हा
के जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फ़रब का
। फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है तथा वह केवल भा
के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था हा कि
हा, वह पूर्णतः सच नहीं है। वह बहत ही हाल की मानव निर्मित नीतियों
भार भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप
इमानदार आदमी ही नहीं रह गया है। जो जितने
खाई देते हैं। गुण कम या बिलकल ही नहीं। स्थिति अगर ऐसा है,
। कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत
व का रोजगार करने
सा जाने लगा है तथा वह केवल भीरु और बेबस
मूल्या के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है,
की घटियों की देन है।
अक्ति का चित्त सब समय आदशों से चालित नहीं होता। जितने बडे पैमाने पर मनष्य की उन्नति के विधान
1 गए. उतनी ही मात्रा में लोभ, मोह जैसे विकार भी विस्तृत होते गए, लक्ष्य की बात भूल गए। आदशा का
नाक का विषय बनाया गया और संयम को दकियानूसी मान लिया गया. परंत इससे भारतवर्ष के पुराने आदशा
महानता नष्ट नहीं हो सकती, क्योंकि भारतवर्ष सदा कानन को धर्म के रूप में देखता आ रहा है। आज
एक कानन और धर्म में अंतर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा
सकता है। यही कारण है कि जो लोग धर्मशील हैं, वे भी कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते।
बात के पर्याप्त प्रमाण खोजे जा सकते हैं कि समाज के ऊपरी वर्ग में चाहे जो भी होता रहा हो, भीतर-भीतर
तवर्ष अब भी यह अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी चीज है। अब भी सेवा, ईमानदारी, सच्चाई और
आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए हैं। वे दव अवश्य गए हैं, लेकिन नष्ट नहीं हुए हैं। आज भी वह मनुष्य से प्रेम
करता है, झूठ और चोरी को गलत समझता है। दूसरे को पीड़ा पहुंचाना पाप समझता है। हर आदमी अपने
क्तिगत जीवन में इस बात का अनुभव करता है। समाचार-पत्रों में जो भ्रष्टाचार के प्रति इतना आक्रोश है, वह
सही साबित करता है कि हम ऐसी चीजों को गलत समझते हैं और समाज में उन तत्त्वों की प्रतिष्ठा कम करना
चाहते हैं, जो गलत तरीके से धन या मान संग्रह करते हैं।
प्रश्न
in आजकल ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय क्यों समझा जाने लगा है ?
in जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था क्यों हिलने लगी है ?
in मनुष्य की उन्नति का उसके आदर्शों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
iv) आजकल कानून और धर्म में क्या अंतर कर दिया गया है ?
(v) आजकल भारतवर्ष क्या अनुभव कर रहा है और कैसे ?
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Answer:
आजकल समाचार पत्रों में क्या छपता है ? *
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ठगी एव डकैती
चोरी और तस्करी
भ्रष्टाचार
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