Reed ki haddi chapter summary
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रीढ़ की हड्डी श्री जगदीशचन्द्र माथुर का एक सामाजिक व्यंग्य है जो कि एक पढ़ी-लिखी लड़की उमा के विवाह के सम्बन्ध में लिखा गया है।एक सामान्य नागरिक रामस्वरूप की पुत्री बी० ए० तक शिक्षा प्राप्त कर चुकी है। वह कालेज छात्रावास में रह चुकी है। वह विचार से सीधी किन्तु सिद्धान्तों की कटु समर्थक है।इसी कारण वह ऐसे लड़के के पिता की आलोचना करती है जो स्त्री-शिक्षा के विरोधी हैं।गोपाल प्रसाद का लड़का शंकर लखनऊ मेडिकल कालेज का छात्र है जो प्रत्येक कक्षा में कम से कम एक बार अवश्य फेल होता है।वह लडकियों के छात्रावास का चक्कर लगाता है जिसके कारण कई बार पीटा भी जा चुका है।
प्रस्तुत एकांकी का प्राण उमा के विवाह के लिए आने वाले गोपाल, उनके पुत्र शंकर तथा उमा के पिता रामस्वरूप जी का आपसी संवाद है।रामस्वरूप अपनी पुत्री की उच्च शिक्षा को छिपाते हैं।जब उमा पान लेकर बैठक में जाती है तो उसकी आँखों पर सुनहला चश्मा देखकर गोपाल चौंक पड़ते हैं।कई बार के आग्रह के बाद उमा मुंह खोलती है और लडकियों को भेंड-बकरी की तरह मानने वाल गोपाल प्रसाद को वह आडे हाथों लेती है।जब गोपाल प्रसाद अपनी बेइज्जती का हंगामा करना चाहते है तो वह उनके पुत्र शंकर का लडकियों के छात्रावास का चक्कर काटने की आदत का पोल खोलती है।वह कहती है कि शंकर महोदय फरवरी माह में छात्रावास के इर्द-गिर्द घूमने के कारण बुरी तरह से पीटे गये जिसमें उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई थी।वह बड़ी मुश्किल से नौकरानी के पैरों पड़कर जान बचा सके थे।
उमा के मुंह से यह भेद खुलते ही शंकर की हवाइयाँ उड जाती हैं और वह चुपचाप वहां चल देता है।गोपाल प्रसाद उमा की योग्यतापूर्ण बातें सुनकर अपना सन्तुलन खो देता है और उपहास मय स्थिति में ही नाटक का अन्त हो जाता है।