review on science and hindi textbook
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डॉ. हरिकृष्ण देवसरे
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विज्ञान में उन्नति होने और विज्ञान संबंधी अन्य पुस्तकों के उपलब्ध होने के बावजूद, हिंदी में वैज्ञानिकों की प्रामाणिक एवं मौलिक जीवनियों का अभाव था। दरअसल, हुआ यह कि किसी ने यदि अंग्रेजी से एक जीवनी लिखी तो अन्य तमाम जीवनियाँ भी उसी को देखकर लिखी गईं। इसका फल यह हुआ कि जो गलती पहले अनुवादक लेखक ने की, उसे ही बाकी लोग नकल करते रहे।
किसी ने उसकी प्रामाणिकता को नहीं परखा। इस कारण ऐसी प्रामाणिक वैज्ञानिक-जीवनी की पुस्तक की बहुत प्रतीक्षा थी और वह अब आई है - 'विज्ञान के अनन्य पथिक' के नाम से। इसके लेखक हैं डॉ. सुबोध महंती। इसके पहले भाग में भारतीय वैज्ञानिकों की जीवनियाँ हैं तो दूसरे खंड में विदेशी वैज्ञानिकों की।
महंती ने बड़े परिश्रम से एक-एक वैज्ञानिक के बारे में उपलब्ध सामग्री का पूरी तरह मंथन कर सारे तथ्य निकाले हैं। कई तो ऐसी बातें हैं जो पहले किसी ने नहीं लिखीं। महंती ने लिखा - 'इस पुस्तक में प्रस्तुत जीवनियों को लिखने से पहले उपलब्ध स्तरीय स्रोत सामग्री का अवलोकन करने का प्रयास किया गया है ताकि प्रामाणिकता बनी रहे। इसके फलस्वरूप पाठक यह पाएँगे कि इस पुस्तक में जहाँ बहुत से रोचक तथ्य दिए गए हैं, वहीं अनेक ऐसे अल्पज्ञात सत्य भी उद्घाटित किए गए हैं जो अधिकांश जीवनी पुस्तकों में उपलब्ध नहीं हैं।'
इन जीवनियों के लेखन में जहाँ डॉ. महंती की दृष्टि प्रामाणिकता और सामग्री स्रोतों पर रही है, वहीं इनके लिखने का सार्थक उद्देश्य भी वह नजरअंदाज नहीं कर पाए। महंती स्वयं वैज्ञानिक हैं और एक वैज्ञानिक के कार्य से कैसे प्रेरणा ली जा सकती है - यह उन्हें अच्छी तरह ज्ञात है इसलिए इन जीवनियों को लिखकर उन्होंने इन्हें सार्थकता प्रदान की। ये जीवनियाँ हर समाज की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक हैं।
सुबोध महंती ने इन जीवनियों को लिखने के पीछे अपना उद्देश्य स्पष्ट करते हुए लिखा है - 'मेरा उद्देश्य युवा पीढ़ी को यह बताकर प्रेरित करना है कि कैसे हमारे महान वैज्ञानिकों ने काम किया और किन परिस्थितियों में उन्होंने क्या उपलब्धियाँ प्राप्त कीं। 'विज्ञान के अनन्य पथिक' के प्रथम खंड में इक्कीस भारतीय वैज्ञानिक सम्मिलित हैं। ये वे वैज्ञानिक हैं जिन्होंने भारत में आधुनिक विज्ञान का विकास किया और उसके लिए नया क्षितिज तैयार किया।
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